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________________ विश्वलोचनकोश: परमस्तु त्रिषूत्कृष्टे प्रधानाद्योश्च पुंसि तु । ओंकारे परमं तु स्यादनुज्ञायामसंज्ञकम् ॥ ५२ ॥ प्रक्रमोऽवसरे चानुक्रमे चापक्रमे क्रमे । प्रतिमाऽनुकृतौ दन्तबन्धनेऽपि च दन्तिनाम् ॥ ५३ ॥ आदावपि प्रधानेऽपि प्रथमं वाच्यलिङ्गकम् । प्रहर्मः सौधकूटस्थकलशाद्विनितम्बयोः ॥ ५४ ॥ मध्यमो मध्यदेशे स्यात्स्वरे मध्येऽथ मध्यमा । त्रिषु दृष्टरजोनारीराकयोर्मध्यमा स्त्रियाम् ॥ ५५ ॥ कर्णिकात्र्यक्षरच्छन्दकरमध्याङ्गुलीषु च । विक्रमस्तूद्यमक्रान्तौ क्षमायां शक्तिसंपदि ॥ ५६ ॥ विद्रुमो रत्नवृक्षेऽपि प्रवाले नवपल्लवे । विभ्रमस्तु विलासेस्याद् विभ्रमो भ्रान्तिहावयोः ॥ ५७ ॥ २५० परम श्रेष्ठ, ( त्रि० ) प्रधान (मुख्य) । मध्यमा - रजखला स्त्री, पूर्णचंद्रवाली आदि, (पुं० ) पूर्णिमा, ( स्त्री० ) ॥ ५५ ॥ कर्णिका ( पुष्पकी केसर ), तीन अक्षरोंका छंद, हाथकी मध्यम अंगुली, (स्त्री० ) परम - ॐकार, ( न० ) आज्ञा ( अव्यय ) ।। ५२ ।। प्रक्रम - अवसर, अनुक्रम, अपक्रम ( उलटा क्रम ) क्रम, (पुं० ) प्रतिमा-अनुकृति ( अनुकरण ), हस्तियों का दंतबंधन, (स्त्री० ) ५३ प्रथम-आदि, प्रधान, (त्रि० ) प्रहर्म्म- महलकी शिखरका कलश, पर्वतका नितंब, (पुं० ) ॥ ५४ ॥ मध्यम- मध्यदेश, मध्यम-खर, (पुं०) [ मान्तवर्गे विक्रम-उद्यम, क्रान्ति, क्षमा, शक्ति, संपत्, (पुं० ) ॥ ५६ ॥ विद्रुम - रत्नवृक्ष, मूंगा, नवीन पत्ता, ( पुं० ) विभ्रम-विलास, भ्रान्ति, हाव (स्त्रीकरणभेद ) ( पुं० ) ॥ ५७ ॥ " Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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