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________________ ( 8 ) वर्त्मन्यधीत्य मिलितः प्रतिभान्वितानां चेदस्ति दुर्जनवचो रहितं तदानीम् ॥ ४ ॥ यत्नो मयायमनपायमशेषविद्या विद्याधरीपरिवृढस्य मतौ नियोक्तम् । त्यक्त्वा पुनर्विमलकौस्तुभरत्नमन्यो लक्ष्मीविनोदरसिको रसिकोस्ति धन्यः ॥ ५ ॥ नागेन्द्रसंग्रथितकोशसमुद्रमध्ये नानाकवीन्द्रमुखशुक्तिसमुद्भवेयम् । विद्वग्रहादमरनिर्मित पट्टसूत्रे मुक्तावली विरचिता हृदि संनिधातुम् ॥ ६ ॥ वीतरागस्य सुरभेर्यशः कुसुमशालिनः । श्रितोस्मि चरणस्थानं यः पुंनागत्वमागतः ॥ ७ ॥ श्रीधरसेनाचार्य किस समयमें हुए हैं, इस बातका पता न तो इस प्रशस्तिसे लगता है और न किसी अन्य ग्रन्थसे । हमने इस विषय में जो सामान्य प्रयत्न किया था, उसमें हमें सफलता प्राप्त नहीं हुई । परन्तु यदि कोई ऐतिहासिक पंडित इन महानुभाव कोशकारका समयनिर्णय करनेका तथा इनके अन्यान्य ग्रन्थोंके पता लगानेका परिश्रम उठावेंगे, तो उन्हें अवश्य सफलता होगी । ' दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्त्ता और उनके ग्रन्थ' नामक पुस्तकसे मालूम होता है कि, जैनियोंमें श्रीधर, श्रीधरसेन आदि नामके कई विद्वान् हो गये हैं और उनके बनाये हुए श्रुतावतार, भविष्यदत्तचरित्र, नागकुमार कथा आदि कई ग्रन्थ हैं, परन्तु उक्त ग्रन्थोंके देखे विना यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि, वे इन श्रीधरसेनसे पृथक् हैं अथवा यही हैं । " Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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