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________________ उनके लिये मैं पाठकोंसे क्षमा भी चाहता हूं, तो भी इतना कहे विना नहीं रहूंगा कि, मैंने इसमें परिश्रम करनेमें कमी नहीं की है। - इस ग्रन्थके रचयिता श्रीधरसेन नामके जैन विद्वान हैं। इनके गुरुका नाम श्रीमुनिसेन था, जो कि सेनसंघके आचार्य थे और बड़े भारी कवि तथा नैयायिक थे । दिगम्बर सम्प्रदायके मुनियोंके जो चार संघ हैं, सेन उनमेंसे एक है। श्रीधरसेन नानाशास्त्रोंके पारगामी विद्वान् थे और बड़े २ राजा लोग उनपर श्रद्धा रखते थे । वे काव्यशास्त्रके मर्मज्ञ तथा कवि भी थे। उन्होंने नाना कवियोंके रचे हुए कोशोंसे तथा ग्रन्थोंसे संग्रह करके इस यथार्थतया विश्वलोचन कोशकी रचना की है। इन सब बातोंका परिचय इस कोशकी प्रशस्तिके निम्न लिखित श्लोकोंसे मिलता है: सेनान्वये सकलसत्त्वसमर्पितश्री: श्रीमानजायत कविर्मुनिसेननामा । आन्वीक्षिकी सकलशास्त्रमयी च विद्या यस्यास वादपदवी न दवीयसी स्यात् ॥ १॥ तस्मादभूदखिलवाडमयपारदृश्वा विश्वासपात्रमवनीतलनायकानाम् । श्रीश्रीधरः सकलसत्कविगुम्फितत्त्वपीयूषपानकृतनिर्जरभारतीकः ॥२॥ तस्यातिशायिनि कवेः पथि जागरूकधीलोचनस्य गुरुशासनलोचनस्य । नानाकवीन्द्ररचितानभिधानकोशानाकृष्य लोचनमिवायमदीपि कोशः ॥३॥ साहित्यकर्मकवितागमजागरूकैरालोकितः पदविदां च पुरे निवासी। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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