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________________ तृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । गारुडं स्यान्मरकते विषशास्त्रेऽपि गारुडम् । गारुडं गारुडभवे तरण्डो भेलके पुमान् ॥ ३० ॥ वडिशीसूत्र संबद्धतरद्वस्तुनि नावि च । तित्तिsो दैत्यभेदे स्वात् तित्तिडो यमचेटके ॥ ३१ ॥ वृक्षभेदेऽपि वृक्षाम्लबिंबयोरपि तिन्तिडी । द्राविडो बेधमुख्ये स्यान्नीवृदन्तरसङ्ख्ययोः ॥ ३२ ॥ निर्गुण्डीन्द्राणिकानीलशेफाल्योः करहाटके | पिचण्डः पुंसि जठरे पशोरवयवेपि च ॥ ३३ ॥ पूत्यण्डः श्वाविद्गन्धमृगयोर्गन्धकीटके । प्रकाण्डोत्री तरुस्कन्धे प्रशस्ते विटपेऽपिच ॥ ३४ ॥ प्रचण्ड दुर्वहे श्वेतकरवीरे प्रतापिनि । arusो मुखरोगे स्यादंतरावेदिवृन्दयोः ॥ ३५ ॥ गारुड-मरकत (नीली) मणि, विष- | निर्गुडी - पुष्पभेद, नीलासंभालू, कमशास्त्र, विषशास्त्र विषै होनेवाला ( न० ) लकंद, (स्त्री० ) तरंड - नदी आदिमें तरनेका पूला आदि ॥ ३० ॥ मच्छी पकडनेका कांटाके सूत्र के संबंध से तिरती हुई वस्तु, नौका, (पुं० ) तिन्तिड- दैत्यभेद, धर्मराजका किंकर | पिचंड - उदर (पेट), पशुका एक अंग, (पुं० ) ॥ ३३ ॥ पूत्यंड-सेही, गन्धमृग, गन्धकीटक ( गंधकीडा ) (पुं० ) प्रकांड-वृक्षकी जड़से शाखाओंतकका भाग, श्रेष्ठ, वृक्ष, (पुं० न० ) ॥ ३४ ॥ (पुं० ) ॥ ३१ ॥ तिन्तिडी-त्रुक्षभेद, चूका-शाक, इम प्रचंड - जिसके साथ दुःखसे बर्ताव ली-वृक्ष, द्राविड- वेधमुख्य, देशभेद में उत्पन्न 1 होनेवाला, संख्याभेद (पुं० ) ॥ ३२ ॥ ९५ हो वह, सफेद कनेर, प्रतापी, (पुं०) वरंड - मुखरोग, अन्तरावेदि (भीतरका चतरा) वृन्द (समूह) (पुं०) ॥३५॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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