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________________ मेघमहोदये केतुगामण रविससिगहण इक्कमि होइ उकिट्टि ॥ १६४ ॥ जिण नक्खत्ति भडली कांई होइ अनिट्ठ । तिण नवि वरसे अंबुधर जाणे गन्भविण ॥१६५॥ अथ प्रसक्तानुप्रसक्तचन्द्रसूर्यग्रहणफलम्सूर्याचन्द्रमसोर्ग्रहः शुभकरो मार्गे तथा कार्त्तिके, पौषे धान्यमहर्घता जनभयं वर्षे पुरो मध्यमम् । माघे वाञ्छितवृष्टिरन्नविगमः स्यात् फाल्गुने दुःखचैत्रे चित्रकरादिलेखक महापीडा समा मध्यमा ॥ १९६ ॥ वैशाखे तिलतैलमुद्गरुतं कार्पासकं नाशयेद्, ज्येष्ठेऽवर्षणधान्यनाशनकरं स्याद् भाविवर्ष शुभम् । आषाढे कचिदेव वर्षति घनो रोगोऽन्नलाभः कचिद्, वृक्षे मूलफलानि हन्ति सहसा वर्ष शुभं सम्भवेत् ॥ १६७॥ एक भी हो तो कष्ट देने वाला होता है ॥ १६४ ॥ भडली का कहना है कि जिस नक्षत्र पर अनिष्ट ( उत्पात ) हो, उस नक्षत्र में जल नहीं वरसता है और गर्भ का विनाश होता है ।। १६५ ॥ + सूर्य चन्द्रमा का ग्रहण कार्त्तिक और मार्गशिर मास में हो तो शुभ करता है । पौष मास में हो तो धान्य का भाव तेज, मनुष्यों को भय और अगला वर्ष मध्यम करता है। माघ मास में हो तो इच्छानुसार वृष्टि और अन्न की प्राप्ति विशेष होती है । फाल्गुन मास में हो तो दुःख दायक है । चैत मास में हो तो चित्रकार और लेखक आदि को महा पीडा तथा वर्ष मध्यम हो ॥ १६६ ॥ वैशाख मास में हो तो तिल तैल मूंग रूई और कपास का नाश हों । ज्येष्ठ मास में हो तो वृष्टि न हो और धान्य का नाश और अगला वर्ष शुभ हो । आषाढ में ग्रहण हो तो कहीं जल वर्षे, कहीं रोग और कहीं अन्न का लाभ हो, वृक्षों के मूल फल टूट पड़े, शेष वर्ष शुभ रहे || १६७ ॥ श्रावण मास में हो तो घोडियों के और (24) "Aho Shrutgyanam" ~
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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