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________________ (३४) मेघमहोदये विदंशुल्लक्षणाम्-- कपिलाविशुदनिलं कुर्यात् पीता तु वृष्टये । लोहिता आतपाय स्यात् मिता दुर्भिक्षहेतवे ॥१८३।। केतुफलम् . . श्रावणे भाद्रमासे च केतवो वारुणा दश । जलवृष्टिकरा लोके तदा धान्यसमर्थता ॥१८४॥ आश्विने कार्तिके ते स्युः सूर्यपुत्राश्चतुर्दश । कुर्युश्चतुष्पदे मृत्यु दुर्भिक्षं देशनाशनम् ॥१८५॥ वह्निपुत्राश्चतुरित्रशतु केतवो मागपौषयोः । अग्निदाहं चौरभयमनावृष्टिं दिशन्त्यमी ॥१८६॥ केतवो यमपुत्राः स्युर्माघफाल्गुनयोर्नव । धान्यं महर्ष दुभिक्षं कुर्युभूपमहारगाम ॥१८७॥ केतवोऽष्टादश सुता धनदस्य वसन्तके। कपिल वर्ण की (भूरी) बिजली चमके तो पवन चले, पीले रंग की चमके तो बहुत वर्षा हो, लाल रंग की चमके तो मग्मी अधिक पडे और श्वेत वर्ण की चमके तो दुर्भिक्ष पड़े ।। १८३ ॥ ___ श्रावण और भादौ महीने में दश केतु वरुण के पुत्र हैं, ये लोक में उदय होनेसे जल की वृष्टि और अनाज सस्ता करते हैं।।१८४॥ आसोज और कार्तिक में चौदह केतु सूर्य के पुत्र हैं, ये पशुओं का विनाश , दुर्भिक्ष और देश का नाश करते हैं ।। १८५ ॥ मार्गशिर और पोष मास में चौतीस केतु अग्निके पुत्र हैं, ये अग्निदाह चोरभय और अनावृष्टि करते हैं ॥ १८६ ॥ माघ और फाल्गुन मास में नव केतु यम के पुत्र हैं, ये धान्य की महर्घता दुष्काल और राजाओं में विग्रह करते हैं ॥ १८७ ॥ चैत्र और वैसाख में अठारह केतु कुबेर के पुत्र हैं, ये लोक में उदय होनेसे सुख मंगल और सुभिक्ष करते हैं "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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