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________________ (२८) मेघमहोदये प्राकार गिरिशृङ्गाणि तोरणस्थलभूमिकाः । वायुवेगविधूतानि वनानि निपतन्ति हि ॥१४६॥ वारुणमण्डलम् आर्द्राश्लेषोत्तराभाद्रपदं पौष्णं च वारुणम् । पूर्वाषाढा मूलमेतद् वारुगां मण्डलं स्मृतम् ॥ १५०॥ एषूत्पातोदये पूर्व गदिते स्यात् प्रजासुखम् । बहुक्षीरघृता गावो बहुपुष्पफला द्रुमाः ॥ १५१ ॥ बहुधान्या मही लोके नैरुज्यं बहु मङ्गलम् । धान्यानि च समर्धाणि सुभिक्षं प्रबलं भवेत् ॥ १५२ ॥ कोटका मूषकाः सर्पाः शलभा मृगकुक्कुटाः । मारिः पिपीलिकाकाण्डं स्थलदेशे प्रजायते ॥ १५३॥ माहेन्द्रमण्डलम् - ज्येष्ठानुराधारोहिण्यौ धनिष्ठा श्रवणस्तथा । अभिजिचोत्तराषाढा शुभं माहेन्द्रमण्डलम् ॥ १५४ ॥ एषूत्पातोदये लोकाः सर्वे मुदितमानसाः । भूमि ये सब वायु वेग से भंग हो जाय और वन के वृक्ष गिर पड़ें ॥१४६॥ आर्द्रा आश्लेषा उत्तराभाद्रपद रेवती शतभिषा पूर्वाषाढा और मूल ये वारुणमण्डल के नक्षत्र हैं ।। १५० ।। यदि इनमें पूर्वोक्त कोई उत्पात हो तो प्रजा को सुख हो, गायों में दूध बहुत हों, वृक्षों में फलफूल बहुत हों ॥। ११५१ ॥ पृथ्वी पर बहुत धान्य उत्पन्न हों, निरोगता और मंगल हों, धान्य सस्ते और सर्वत्र सुभिक्ष हो ॥ १५२ ॥ कीड़े मूसें सर्प शलभ मृग कुक्कुट मारी ( प्लेग ) और चींटी ये स्थल प्रदेश में अधिक हो ॥ १५३ ॥ ज्येष्ठा अनुराधा रोहिणी धनिष्ठा श्रवण अभिजित् और उत्तराषाढा ये माहेन्द्रमण्डल के नक्षत्र हैं ॥ १५४ ॥ इनमें पूर्वोक्त कोई उत्पात हो "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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