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________________ (४०६) मेषमहोदये उभीसंक्रांति ते उभी भावइ,वाधइप्रजाने राजसुख पाया। घरि घरि मंगलतर बजावइ,गौब्राह्मण सहु लोकसुखपायह।। पन्नरमुहूत्ती जो जगि खेलइ, तीडा मूसा चोरह ठेला । तीस मुहती रण उपजावे, माणस घोड़ाहाथी खपावइ।१०१॥ कण सुहंगो व्यापार वधारे, करे सुभिक्षने घरमसुधारे । पंचतालीस मुहूत्ती आई, घणो सुगाल नइ घणी वधाई।१०२॥ मृगकर्त्यजगोमीनेष्वर्को वामाघ्रिणा निशि । अलि सुप्तस्तु शेषेषु प्रचलेद दक्षिणाध्रिणा ॥१०३॥ स्वे स्वे राशौ स्थिते सौम्ये भवेदौस्थ्य व्यतिक्रमे । चिन्तनीयस्ततो यत्राद्रात्र्यहः प्रोक्तसंक्रमः ॥१०४॥ तुलाषट्कस्य संक्रान्तिःस्यादेकतिथिजा शुभा। द्वाभ्यां विमध्यमाञया बहुभिदौस्थ्यकारिणी ॥१०॥ नुष्योंका विनाश करे ॥६६खड़ीसंक्रांति प्रजाकी वृद्धि, राजाको सुख, घर घर मंगलिक और गौ ब्राह्मग आदि समस्त लोक सुख पावे ॥१०.०॥ संक्रांति पंद्रह मुहूर्त की हो तो जगत्में टिड्डी, मूंसे और चोर के उपद्रव हो तीस मुहूर्त की हो तो युद्धका संभव, मनुष्य बोड़ा हाथी इनका विनाश हो ॥१०१॥ पचतालीस मुहूत्ते की हो तो धान्य सस्ते, व्यापारकी वृद्धि, बहुत सुभिक्ष, बहुत मंगलिक और वर्ष अच्छा करे ॥ १०२॥ मकर कर्क मेष वृष और मीनराशिका सूर्य रात्रिमें संक्रमण हो तो बायी चरणसे चलता है। दिनमें संक्रमण हो तो सूर्य सुप्त माना गया है और बाकी के समय संक्रमण हो तो दक्षिण चरणसे चलता है ॥१०३॥ अपनी २ राशि पर ग्रह नियमानुसार रहे तो शुभ और विपरीत हो तो दुःख होता है । इसलिये दिनरात्रिमें कहे हुए संक्रांतिका यत्न से विचार करना चाहिये ॥१०४॥ तुला आदि छ: संकांति यदि एकही तिथिको हो तो शुभ,दो तिथिमें हो तो : मध्यम और बहुत तिथिमें हो तो दुर्भिक्षकारक होती है ॥ १०५ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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