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________________ सूर्यचारकथमम् दुन्मिक्खं सनिवारे हवइ बुधवार देवजोएण। दुभिक्खं छत्तभंगा आगमसंवच्छरपरिखा" ॥१४॥ शनिभानुकुंजैरिबहवः संक्रमा यदा। महर्घमनिलं रोग कुर्वते राजविड्वरम् ॥६५॥ सूर्योदये विषुवती जगतो विपत्य, . मध्यंदिने सकलधान्यविनाशहेतुः। संक्रान्तिरस्तसमये धनधान्यवृद्धन्यै, क्षेमं सुभिक्षमवनौ कुरुते निशीथे ॥६६॥ अत्र लोकः-सीयाले सूती भली, बैठी वर्षावाल। उन्हाले उभी भली, जोसी जोस संभाल ॥९७॥ स्मृती सूत्र कपासह पूणे, वायु करे रस सयल विधूणे। आघकरे जग लोक संतावे, स्मृती संक्रांति इणि परिभावे॥ बैठीसंक्रांति ते बग बेसारे, वायुकरे चउपायु मारे । मंदवाड करि लोग खपावे, बैठी संक्रांति इसडी आवे।६। ६३ ॥ शनिवार हो तो दुर्भिक्ष हो, यदि दैवयोगसे बुधवार हो तो दुर्भिक्ष तथा छत्रभंग आगामि संवत्सर तक रहैं ॥१४॥ यदि शनि रवि और मंगलवारको बहुतसी संक्रांति हो तो अनाज महँगे हो, पवन की अधिकता, रोग और राज विग्रह हो ॥६५॥ यदि सूर्योदयके समय संक्रांति हो तो जगत्को विपत्तिके निमित हो, मध्य दिन में हो तो सब धान्यका विनाश हो, अस्त समय हो तो धन धान्यकी वृद्धिके लिये हो, और अर्द्धरात्रि में हो तो पृथ्वी पर क्षेम (कल्याण) और मुभिक्ष हो ॥ ६६ ॥ लोकिक में भी कहते है कि-शीतऋतु में सूतीसंक्रांति, वर्षाऋतु में बैठीसंक्रांति और प्रीष्मऋतु में खड़ीसंक्रांति ये शुभदायक होती हैं ॥ १७ ॥ सूतीसंक्रांति सूत कपासका नाश करे,अधिक वायु करे,समस्त रसका विनाश करें,और समस्त लोकको संताप करे ॥१८॥ बैठीसंकांति अधिक वायु करे, पशुओंका विनाश करे, रोगसे म "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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