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________________ मेघगभलक्षणम् गर्भादमाघमी भाद्र द्रोण मेघप्रवासिनी ॥४॥ अष्टम्यांदिचतुष्के तु चतुर्यादित्रये धनः । भवेद भाद्रपदे मासे जगतः सुखसाधनम् ॥४॥ पञ्चमी ससमी चैत्रे नवम्येकादशी सिता। त्रयोदशी पूर्णिमा च दिनेष्वेतेषु वर्षकात् ॥४६॥ करकापातनाद्विदर्शनाद गर्जितादपि । वर्षाकाले जलघर छिद्र देव प्रवर्षति ।।४७॥ पछा वायुरिव त्रेधा ज्ञापकः स्थापकः पुनः । उत्पादकश्च गर्भोऽत्र सार्द्धषापमासिकोऽन्तिमः ॥४८i कार्तिकवादशीगर्भो ज्ञापकः शुचिवर्षणे। मार्गशुक्लस्य पश्चम्याः श्रावणादिचतुष्टये ॥४९।। पौषकृष्णाष्टमीगर्भो ससम्यां नभमः सिते । पौषकृष्णदशम्यां हि गर्भो भाद्रासितस्य वा ॥५०॥ फाल्गुन शुक्ल स.ती कृतिका युक्त हो उस दिनवा गर्भसे भाद्रपद की अमावसको एक द्रोग जलवर्षा हो ॥४४ ॥ फल्गु में अष्टमी प्रादि चार दिन गर्भ हो तो भाद्रपद में चतुर्थी आदि तीन दिन जगतको सुखकारक वर्षा हो ॥४५॥ - चैत्र शुक्ल पंचमी सप्तमी नवमी एकादशी त्रयोदशी और पूर्णिमा इन दिनोंमें वर्षा हो, ओला गिरे, बिजली चमके और गर्जना हो तो वर्षाकाल में छिद्रसे ही वर्षा हो ॥ ४६॥४७॥ जैसे वायु तीन प्रकार के हैं ऐसे गर्भ भी ज्ञापक, स्थापक और उत्पादक ये तीन प्रकार के हैं, इनमें अन्तिम साढ़े छपासका गर्भ उत्तम माना है ॥४८॥ कार्तिक शुक्ल द्वादशीका गर्भ आषाढ में वर्षता है । मार्गशीर्ष शुरू पंचमी का गर्भ श्रावण आदि चार मास बरसता है ॥ ४६॥ पौषकृष्ण प्र. एमी का गर्भ श्रावण शुक्ल सप्तमी को बरसता है। पौषकृष्ण दशमी का "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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