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________________ मेघगर्मलक्षणम् मत्वासारसमागमोदयविदा-मभ्याससेवाकृता प्यादिष्टं ननु वर्षयोधनधनं हर्षाय वर्षार्थिनाम् ॥३४०॥ इति श्री मेघमहोदयसाधने वर्षप्रयोधग्रन्थे तपागच्छीयमहोपाध्याय श्रीमेघविजयगणिविरचितेगस्तिवर्षराजादिज.. न्मलमाभ्रवियुदादिकथने सप्तमोऽधिकारः। अथ गर्भकथननामाष्टमोऽधिकारः। मेघगर्भलक्षणम् अथ वायुजलादीनां संघातः स्त्यानपुद्गलः । गृहस्स गर्भशब्देन वाच्योऽस्योत्पत्तिरुच्यते ॥१॥ कार्तिके प्रतिपन्मुख्या-स्तिथयः कृष्णजाः कलाः । अमावसी षोडशीयं ऋतोः षोडशरात्रयः ॥२॥ गर्भादिः कार्तिकस्तेन रक्तवर्णनभोधरः। कृतिकार्के गर्भपाकाद् वृष्टिः कल्याणकृत्तदा ॥३॥ का समागम के उदय को जाननेवालों से अभ्यास करके तथा उनकी सेवा करके वर्षाके अर्थिजनों के हर्षके लिये यह वर्षबोधरूप धनको मैंने कहा ॥३४०॥ सौराष्ट्रराष्ट्रान्तर्गत-पादलिप्तपुरनिवासिना पण्डितभगवानदासाख्यजैनेन विचितया मेघमहोदये बालायबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकितोऽग स्तिवर्षराजादिनिरूपणनामा सप्तमोऽधिकार:। ___ वायु और बादल आदिके इकठे हुए पुद्गलोंके समूहरूप जो गूढ मेघ है उसको गर्भ कहते है। उसकी उत्पत्ति कहते हैं ॥१॥ कार्तिक कृष्णपक्षको प्रतिपदासे जो कला संज्ञक तिथि हैं वे ऋतु की सोलह रात्रिय हैं, जिनमें अमावस की रात्रि सोलहवीं है । अर्थात् पूर्णिमा से अमावस पर्यंत सोलह रात्रि कला संज्ञक हैं घे पुष्पवती मानी हैं ॥२॥ कार्तिकमें गर्भादि के कारससे आकाश लाल वर्णवाला होता है । वह गर्भ कृमिकाके सूर्य, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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