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________________ (३१०) मेधमहोदये पौषस्य कृष्णसप्तम्यां* स्वातियोगे जलं यदा । सुभिक्ष क्षेममारोग्यं जायते नात्र संशयः ॥३०४॥ अभ्रच्छन्ने जलं स्वल्पं जलपाले महाजलम् । त्रयोदशीत्रये कृष्णे पोषे विचुच गर्भदा ॥३०५॥ ऐन्द्री विद्युदमावस्यां दर्शनं वा हिमस्य चेत् । अभ्रच्छन्नं नमो वापि सुमित जायले तदा ॥३०॥ माघमासफलम्--- न मावे पतितं शीतं ज्येष्ठे मूलं न रक्षितम् । नार्द्रायां पतितं तोयं तदा दुर्भिक्षमादिशेत् ॥३०७।। सप्तम्यादित्रये माये शुक्ले वार्दलयोगतः । धनधान्यसमृद्धिः स्याद् विवाहाद्युत्सवा जाने ॥३०॥ पौष कृष्णसप्तमीके दिन स्वाति नक्षत्रका योग हो और उस दिन जल बरसे तो सुभिक्ष, क्षेम और आरोग्य हो इसमें संदेह नहीं ॥३०४॥ उस दिन बादल आच्छादित रहे तो थोड़ा जल और जल बरसे तो महावर्षा हो । पौष कृष्ण त्रयोदशी आदि तीन दिन बिजली चमके तो गर्भदायक जानना ॥३०५॥ पौषकी अमावसको पूर्वदिशा में बिजली चमके, हिम गिरे और आकाश बादलोंसे आच्छादित रहे तो सुभिक्ष होता है ॥ ३०६ ॥ इति पौषमासफलम् ॥ भावमासमें शीत न पड़े, ज्येष्टमास में मूल गर्भकी रक्षा न हो यामे ज्येष्ठमासमें गरमी नहीं पडे परंतु वर्ष होकर ठंडक रहे, और आनक्षत्रके दिन वर्षा न हो तो दुर्भिक्ष होता है ॥२०७॥ माघ शुक्ल सप्तमी आदि बीन दिन बादल हो तो धन धान्यकी वृद्धि और प्रजा में विवाह आदि उत्सव . *टी--अत्र प्राचां वाचा लिखितमिदं न चेत्स्वातेरसम्भवःपौष कृष्णकादश्यामिति पाठः, यद्वा पौषकृणसप्तमीदिने जलाच्छुभं तथा पौधे स्वातिनक्षत्रदिनेऽपि जलाच्छुभमित्यर्थः । एवं चनात्र तिथिनक्षत्रयोगः किन्तु तिथिमध्ये उदये नक्षत्रदिने चलक्ष गयोगः। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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