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________________ वर्षराजादिक्रफलम् (३०९) वर्षायां चतुरो मासान् दत्ते मेघमहोदयम् ॥२९॥ पौर्णमासी द्वितीया च विद्युता वा हिमान्विता । वर्षा निष्पत्तिरादेश्या मेघेश्छन्नैस्तथाम्बरे ॥२६॥ आषाढस्य स्वमावास्यां प्रबलं जलमादिशेत् । निष्पत्तिः सर्वसस्यानां प्रजानां च निरुपद्रवाः ॥२६६॥ गावः पयोण्यः सर्वत्र सर्वाप्यामोदिता प्रजा । प्रथमे श्रावणस्यापि पक्षे द्रोणं समादिशेत् ॥३०॥ नागदेवो द्वितीयायां किञ्चित् सर्पभयं भवेत् । अमावास्यामर्कवारे भौमे वा मेघवर्षणात् ॥३०१॥ पूर्णमास्यां यदा पौषे चन्द्रमा नैव दृश्यते । उत्तरस्यां दक्षिणस्यां यदा विद्युत्प्रदर्शनम् ॥३०२।। अभ्रच्छन्नं नभो वापि महावृष्टिं तदादिशेत् । अमावास्यां श्रावणस्य नूनं भाविनि वत्सरे ॥३०॥ २६६।। पौषकी अमावसको मूल नक्षत्र हो और उस दिन बिजली, बादल और अधिक गर्जना हो तो वर्षाके चारों मास मेधका उदय जानना ॥२६७॥ पौषकी पूर्णिमा और द्वितीयाके दिन बिजली चमके, हिम पड़े, तथा प्राकाश बादलों से आच्छादित रहे तो वर्षा अच्छी होती है ॥२६८॥ यह चिह्न हो तो आषाढ अमावास्याको प्रबल जलवर्षा हो, सब प्रकारके धान्य की प्राप्ति और प्रजा उपद्रव रहित हो ॥२६६।। सब जगह गौ दूध देने. वाली हों तथा समस्त प्रजा आनंदित हो । श्रावणके प्रथमपक्ष में द्रोणनामक मेघ बरसे ॥३०॥ द्वितीयाके दिन आश्लेषा हो तो कुछ सर्पका भय हो। अमावास्या को रविवार या मंगलवार हो और उस दिन मेघ बरसे तो ॥ ३०१॥ तथा पौषकी पूर्णिमा के दिन बादलों से चन्द्रमा न दीखे, उत्तर दक्षिण में बिजली चमके ॥३०२॥ और आकाश बादलोंसे आच्छादित रहे तो आगामी वर्ष में श्रावणकी अमावास्याको निश्चयसे महावर्षा हो ॥३०॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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