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________________ महोदये (201) मेघाविपति फलम् - मेघाधिपती सूर्ये स्वल्पं मेघा जलं विमुञ्चन्ति । राजक्षोभस्तस्कर भीतिः स्यादर्घबाहुल्यम् ॥८८॥ चन्द्रे मेघाधिपतौ सस्यद्विजसौख्यवृद्धिरतुला स्थात् । सम्पूर्णजला पृथिवी विज्जनसम्प्रवृद्धिश्च ॥८९॥ भौमे जलदस्वामिनि वह्निभयं दस्युभीर्भुजङ्गभयम् । दुर्भिक्षावृष्टिकृतैरुपद्रवैः पीड्यन्ते त्रिजगत् ॥ ६०॥ सौम्ये मेघस्वामिनि वृष्टिर्बहुलाज्जनानन्दः । लिपिलेख्यकाव्यगणितज्ञातिसुखं सस्यसम्पदपि ॥ ९१ ॥ गुरुरब्दाधिपतिश्चेत् सुदृष्टिसस्याभिवृद्धयः । दोमं याज्ञिकं जनसम्पत्तिः साम्राज्यं धर्मसंसिद्धिः ॥६२॥ शुक्रो मेघाधिपतिः कामिजनानां सुखावहो भवति । गावः प्रभूतदुग्धा वसुधा बहु सस्यसम्पूर्णा ॥ ६३॥ शनौ मेघाधिनाथे स्याद् वात्यामण्डलसम्भ्रमः । जिस वर्ष में सूर्य मेवाधिपति हो उस वर्ष में वर्षा न हों, राजाओं क्षुमित हों, चोरोंका भय और अर्थ की बहुलता हो ॥८८॥ चंद्रमा मेघात्रिपति हो तो धान्य द्विज और सुखकी बहुत वृद्धि हो, सम्पूर्ण पृथ्वी जल से चार्दित हो और विद्वान लोगोंकी वृद्धि हो ॥६॥ मंगल हो तो अनि का भय, चोरोंका भय, समका भय, दुर्भिक्ष, और अनावृष्टि आदि उपद्रवों से तीनों ही जगत् पीड़ित हों ॥ ६० ॥ बुध हो तो अधिक वर्षासे लोग आनंदित हो, लिपि, लेखक, काव्य, गणित आदि कार्य करनेवाली ज्ञाति को सुख हो और धान्य संपदा प्राप्त हो ॥ ६१ ॥ गुरु मेवाधिपति हो तो अच्छी वर्षा हो, धान्यकी वृद्धि हों, कुशल, याज्ञिक, जनसम्पत्ति, साम्राज्य और धर्म की सिद्धि इनकी वृद्धि हो ॥ ६२ ॥ शुक्र मेघपति हो तो काभि लोगोको -सुख हो, गौ अधिक दूध दें, पृथ्वी बहुत प्रकारके धान्यसे पूर्ण हो "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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