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________________ অথবালাক্ষিক (२६९) यावीसे य सुभिक्ख सिंहामओ महारिसी उदए ॥७॥ दसे दिहाडे बुध थकी, ऋषि उगे जिणमास । धार न खंडे बरसतो, परजा पूगे पास ॥८॥ ग्रन्थान्तरे तु-जो वीसे तो वाणिओ, इकवीसे तो विम। यावीसे जो उगमे, मालीघरे जनम ॥९॥ वणिग्मुनिः खण्डवृष्टयै दुर्भिक्षाय द्विजो मुनिः । मालाजीवी सुभिक्षाय सिंहे सूर्यात् परं फलम् ॥१०॥ यश्चैत्र शुक्लप्रतिपद्दिनस्य, भुंक्त कलां च प्रथमां स वारः । वर्षस्य राजाखलु मेषसूर्य, दिनस्य वारःस हि तन्त्र मंत्री ।११॥ मिथुनार्केहि यो वारः स स्यात् सर्वरसाधिपः । सस्याधिपः कर्करचौ दिनवारो हि धान्यकृत् ॥१२॥ मतान्तरे पुन: "ज्येष्ठाः प्रथमो मन्त्री तचतुर्थः कणाधिपः । दश दिन अगस्त्यका उदय हो तो धाराबंध वरसाद वरसे और प्रजा की पाशा पूर्ण करे ॥८॥ ग्रन्थान्तरसे- सिंह संक्रान्तिसे यदि वीस दिन पर अगस्त्य उदय हो तो वैश्य, इक्कईस दिन पर उदय हो तो ब्राह्मण और बाईस दिन पर उदय हो तो माली, इनके घर क्रमसे अगस्त्य का जन्म समझना ॥६॥ यदि वैश्य मुनि हो तो खंडवृष्टि करता है, ब्राह्मग मुनि हो तो दुर्भिक्ष करता है और मालिके घर जन्म हो तोसुभिक्षकारक होता है ऐसा अगस्त्य का फल सिंहराशिपर सूर्य जाने से जानना चाहिये॥१०॥ जो चैत्रमासके शुक्लपक्ष प्रतिपदाकी प्रथम कला में जो चार हो वह वर्षका राजा होता है और मेषसंक्रान्तिके दिन जो वार हो वह मंत्री होता है ॥११॥ मिथुनसंक्रान्तिके दिन जो वार हो वह सब रस का अधिपति होता है। कर्कसंक्रान्तिके दिन जो वार हो वह धान्यका अधिपति होता है ॥१२॥ मतान्तरसे-- ज्येष्ठा के पर सूर्य आवे उस दिन जो वार हो वह - "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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