SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२५४) मेघमहोदये तदा धान्ये समाधत्वं शेषऋक्षे समर्पता ॥ ११८ ॥ अथ दिनविचार: -- पावन्ने दुभिक्खं तेवन्ने होइ मज्झिमं कार्ल । चउबन्ने समभावं पश्चावन्ने य सुभिक्खं ॥ ११६ ॥ द्विपदु युते वर्षे दिवसानां शतत्रये । सुभिक्षं केचिदप्याहुः परं देशेषु विग्रहः ||१२०|| बाणेषुत्रिदिनैः कालो मध्यमोऽद्रिशर त्रिभिः । वर्ष खपत्रिभिः श्रेष्ठं सुभिक्षं तत्र निश्चितम् ॥ १२१ ॥ अथ रोहिणीवृष्टौ दिनमानवर्षणस्यरविणा मुज्यमानायां रोहिण्यां मेघवर्षणे । द्वासप्तति दिनान्यब्द-वृष्टिर्नाथदिने सदा ॥ १२२ ॥ द्वितीयदिवसे वृष्टा-वष्टपञ्चाशता दिनैः । दृष्टिरोधस्तृतीयेऽह्नि चत्वारिंशन्नवोत्तराः ॥ १२३॥ नक्षत्र हो तो सस्ते हों ॥ ११८ ॥ यदि ३५२ दिनका वर्ष हो तो दुर्भिक्ष, ३५३ दिनका वर्ष हो तो मध्यम, ३५४ दिनका समान और ३५५ दिनका हो तो सुकाल जानना ॥ ११६ ॥ कोई ऐसा भी कहते हैं- ३५२ दिनका वर्ष हो तो सुकाल हो, परंतु देश में विग्रह हो ॥ १२० ॥ ३५५ दिनका वर्ष हो तो काल, ३५७ दिनका मध्यम और ३६० दिनका वर्ष श्रेष्ठ तथा निश्चय से सुभिक्ष कारक होता है ॥ १२१ ॥ 'वर्षा' जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र का भोग कर रहे हो अर्थात् जितने समय रोहिणी नक्षत्र पर सूर्य रहे, इतने समयमें कभी वर्षा हो तो उसका फल कहते है- यदि प्रथम दिन वर्षा हो तो उसके पीछे ७२ दिन तक न बरसे बादमें बरसे ॥ १२२ ॥ दूसरे दिन वर्षा हो तो ५८ दिन तक वर्षा न बरसे । तीसरे दिन वर्षा हो तो ४६ दिन तक वर्षा न बरसे ॥ १२३ ॥ चौथे दिन वर्षा हो तो ४२ दिन वर्षा न हो । पांचवें दिन वर्षा, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy