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________________ (RUR) मेयमहोदवे प्राषाढो नृपती मम शरके भाद्रश्च विश्वाशके, नेत्रे चाश्विनकोऽधिमास उदितो शेषेऽन्य स्थासहि१८ मात्रिंशत् संमितैर्मासैर्दिनैः षोडशभिस्तथा । चतुर्नाडीसमेतैश्च पतत्येकोऽधिमासकः ॥५६॥ यस्मिन् मासे सिते पक्षे पञ्चम्यामेव भास्करः। संक्रामत्यधिको मासः स स्थादागामि वत्सरे ॥१०॥ असंक्रान्तिमासोऽधिमासः स्फुटः स्यादु, : हिसंक्रान्तिमास: क्षयाख्यः कदाचित् । क्षयः कार्तिकादित्रये नान्यतः स्यात, तदा वर्षमध्येऽधिमासव्यं च ॥३॥ यथासंवत् १७३८ वर्षे पौषमासक्षयः, आश्विनचैत्री कृ. द्धौ । न चैवं बाशिन् मासेभ्योऽगिपि मलमाससम्भवाः । यदा एकस्मिन् वर्षे अमावास्यान्तमासहये संक्रान्तिरहितत्वं स्यात्, तदा तयोरेक एवमलमासो यो द्वात्रिंशन् मासेभ्य उप. रहे तो वैशाख, शून्य या आठ शेष रहे तो ज्येष्ठमास, सोलह बचे तो आषाढ, पांच बचे तो श्रावण, तेरह बचे तो भाद्रपद और दो शेष रहे तो प्राश्विन अधिक मास जानना। किंतु इन से अन्य शेष रहे तो कोई मास अधिक नहीं होता ॥ ५८ ॥ ३२ मास, १६ दिन और ४ घडी बीतने पर अधिक मासका संभव होता है ॥ ५६ ॥ जिस महीनेकी शुक्ल पक्षकी पञ्चमीके दिवस सूर्यसंक्राति हो वही महीना भागेके वर्षमें अधिक मास होगा ॥६० ॥जिस महीने में सूर्यसंक्रान्ति न हो वह अधिक मास कहा जाता है । और जिसमें दो संक्रांति हो वह क्षय मास कहलाता है। प्रायः क्षयमास कार्तिकादि तीन महीनों में ही होता है और जब कभी क्षय मास होता है तो उस वर्षमें अधिकमास दो होते हैं। परन्तु यहां चान्द्रमांससे गणना करना चाहिये। अर्थात् अमावास्यासे ममावास्या पर्यन्ता १० "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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