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________________ अयनमासपक्षदिननिरूपणम् (२४१) चैत्रमास वरसंता दिट्ठा, मौ सीयालू गब्भ विट्ठा ॥५३॥ आषाढं रोहिणी हन्ति रौद्रं च श्रावणं हरेत् । पुष्यो भाद्रपदं हन्या-चिन्नाप्याश्विनषृष्टहृत् ॥५४॥ साम्रता तृक्ता-~ चैत्रस्य शुक्लपञ्चम्यां रोहिण्यां यदि दृश्यते । साभ्रं नभस्तदाऽऽदेश्या गर्भस्य परिपूर्णता ॥ ५५ ॥ वैशाखे गर्जितं भूमिः सजला पचनो घनः । उष्णो ज्येष्ठो विशिष्ठः स्यात् किमन्यैर्गर्भचेष्टितैः ॥५६॥ खं पञ्चवर्ण वैशाखे विद्युत्पाते खटत्कृतिः । तदातिवर्षा नभसि धान्यनिष्पत्तिरुत्तमा ॥ ५७ ॥ प्रथाधिकमासः -- शाके वाणकराङ्क विरहिते नन्देन्दुभिर्भाजिते, शेषाग्नौ च मधुश्च माधवः शिवे ज्येष्ठस्तु खे चाष्टके । रोहिणी, सप्तमी के दिन र्द्रा, नवमीक दिन पुष्प और पुर्णिमाके दिन चित्रा वर्षता हुआ देख पड़े याने उस दिन वर्षाद हो तो गर्भका विनाश हो ॥५३॥ रोहिणी युक्त पंचमी के दिन वर्षा हो तो आषाढ मास में वर्षा न हो, इसी तरह आर्द्रा श्रावणमास में, पुष्प भाद्रपदमासमें और चित्रा आश्विन मास में वर्षाका नाश कारक है ||५४|| चैत्रशुक्ल पंचमी के दिन रोहिणी हो और उसी दिन आकाश बादल सहित देखने में आवे तो गर्भकी पूर्णता जाननी ॥ ५५ ॥ वैशाख में मेघ गर्जना हो, भूमि जलवाली हो, वर्षा हो, पवन चले और ज्येष्ठ मासमें अधिक गरमी पड़े तो श्रेष्ठ है ॥ ५६ ॥ वैशाख मास में आकाश पंच वर्णवाला हो, बिजली गिरे, तो बहुत वर्षा हो और धान्यकी उत्पत्ति उता हो ॥ ५७ ॥ वर्तमान शकसंवत् के अंकों में से ६२५ वटा दो, जो शेष बचे उसमें १६ का भाग दो, जो तीन शेष रहे तो चैत्रमास अधिक जानना, ग्यारह शेष ३६ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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