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________________ (२३६) · मेघमहोदये मासीत् पूर्णिमा हीना समाना यदि धाधिका । समर्घ च समाधं च महर्ष कुरुते क्रमात् ॥२८॥ पूर्णिमायाममावास्यां संलग्रस्तारकाक्षयः । महर्षे तत्र पूर्वार्धाद् मासमध्येऽपि जायते ॥२८॥ अमावास्यां यदा चन्द्र उदयास्तं करोति चेत् । महक्षे तदा मासे भवेनुन समर्घता ॥३०॥ कर्कसंक्रमणे मन्दो मकरार्के बृहस्पतिः । तुलार्के मङ्गलो वर्षे तत्र दुर्भिक्षसम्भवः ॥३१॥ भाषाटे कार्तिके मासे फाल्गुनेऽपि च देवतः । जायन्ते पञ्चभौमाश्चेत् पञ्चमासास्तदाऽशुभाः ॥३२॥ अर्द्ध विदेशगमनेऽप्यई शोगितदूषितम् ।। साई म्रियते दुर्भिक्षात् सार्द्धमट्टै च तिष्ठति ॥३३॥ नक्षत्रान्तरगे सूर्य षष्ठश्च चन्द्रमास्थितः । मासमध्ये महर्घत्वं तदा धान्येऽस्ति निर्णयात् ॥३४॥ अधिक हो तो मनुक्रम से सस्ता समान तथा महर्षता हो ॥२८॥ पूर्णिमा और अमावास्या में बराबर तारापात हो तो धान्य का भाव पहले से एक महिने तक महँगा हों ॥ २६ ॥ यदि चन्द्रमा अमावास्या के दिन उदय और अस्त बृहद्नक्षत्रमें हो तो उस मास में निश्चयसे अन्न सस्ता हो॥३०॥ यदि कर्कसंक्रांतिके दिन शनि, मकरसंक्रांतिके दिन बृहस्पति और तुलासंक्रांतिके दिन मंगल हो तो उस वर्षमें दुर्भिक्ष हो ॥ ३१ ॥ आषाढ, कार्तिक और फाल्गुन मासमें यदि दैवयोगसे पांच मंगल आ जाय तो पांच मास अशुभ हो ॥ ३२ ॥ चार भागमेसे अर्द्धभाग का नाश तो विदेश गमनसे, अर्द्ध भागका नाश रुधिर विकारसे और देढ भाग का नाश दुर्भिक्षसे हो जाता है। इस प्रकार ढाई भागका नाश हो कर देढ भाग शेष रह जाता है । २३ || यदि सूर्यनक्षत्र के दिन चन्द्रमा छटा हो तो एक महीना. धान्यभाव, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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