SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवनमासपक्षविननिरूपणम् (२३५) ज्येष्ठमासे विशेषेण वर्षभाय जायते ॥२२॥ चित्रास्वातिविशाखासु यस्मिन् मासे न वर्षणम् । तन्मासे निर्जला मेघा इति गर्गमुनेवचः ॥२३॥ ग्रहाणां यन्मासे ननु भवति षण्णां निवसति स्तदा गोलो योगः प्रलयपदमिन्द्रोऽपि लभते । सुपाणां नाशः स्याज्ज्वलति वसुधा शुष्यति नदी, भवेल्लोको रंकः परिहरति पुत्रं च जननी ॥२४॥ मार्गादिपनमासेषु शुक्लपक्षे तिथिक्षये । दौस्थ्यं वा छत्रभङ्गोऽपि जायते राजविड्वरः ॥२॥ मार्गादिपञ्चमासेषु तिथिवृद्धिर्निरन्तरम् । कृष्णपक्षे तदाऽसौस्थ्यं प्रजामारिः प्रवर्तते ॥२६॥ मासे मासे अमावास्याप्रमाणं प्रविलोक्यते। तिथिवृद्धौ कणवृद्धिः ऋक्षवृद्धौ कणक्षयः ॥२७॥ वर्षा का नाश करे ।। २२॥ जिस महीने में चित्रा स्वाति और विशाखामें वर्षा न हो उस महीने . में मेघ निर्जल रहें ऐसा गर्गमुनिका वचन है ॥ २३ ॥ जिस महीने में छह ग्रह एक राशि पर हों तो वह गोल योग कहा जाता है, इसमें इंद्र भी प्रलयपद को प्राप्त होता है, राजाओं का विनाश हों, पृथ्वी गरमी में प्रज्वलित हो, नदी सूख जाय और लोक ऐसे निर्धन हो जाा कि मा पुत्रको भी त्याग कर दें ॥ २४ ॥ मार्गशीर्षादि गांग गहीने के शुक्ल पक्ष में तिथि का क्षय हो तो अस्वस्थता छत्रभंग और राजविग्रह हों ॥५॥ मार्गशीर्षादि पांच महीनेके कृष्णपक्षमें तिथिको वृद्धि हो तो अस्वस्थता तथा प्रजामें महामारी हो ॥ २६ ॥ प्रत्येक मासकी अमावास्याका प्रमाण देखें. यदि उसमें तिथिकी वृद्धि हो तो धान्यको वृद्धि और नक्षत्रकी वृद्धि हो तो : धान्य का क्षय हो ॥ २७ ॥ महीनेके नक्षत्र से पूर्णिमा न्यून, समान या "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy