SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रनिश्वरवारफलम् (२०५) मांससप्तकं यावद, अहिफेन महर्चता, चोरभयं देशान्तरे महाजनपीडा, प्रथमं वर्षा भवति ततो मासमेकं न वृष्टिः महर्घता पश्चात् सुभिक्षं, लवणे मूल्यवृद्धिर्दिनानि पञ्चदश यावत्, चित्रकूटदुर्गे कटके युद्धं च मनुष्यपीडा धनहानिः शाखा प्रमाणेन, मालपददेशे रोगपीडा, प्रथमं वर्ष भयङ्करं पश्चात् शु भं देशभङ्गो राशिभोगान्ते । 'इत्येतद् गौतमस्वामि' इत्यादि । १० कुंभे शनिस्तदा दक्षिणकुङ्कादेशे महाविग्रहः, राजक्षथ, प्रजाभयं धनप्रलयः, राशिभोगान्माससतकं यावत् सर्वधान्यमहार्घता, आषाढादिमासपञ्चकं यावद 'गोधूममंडईचिगामसूर युगन्धरी चोखा उड़द वटलातुवरी कांगणी चडलाबाजरो' एतानि महर्घाणि, दुष्कालः, माघवृष्टिप्रवला ततो धान्यविनाश छत्र भंगः, फाल्गुन चैत्रतो वस्तुधान्यसंग्रहः, अनम्रा जना नमन्ति अमार्गणा मार्गयन्ति, धान्यद्विगुणलाभः । ' इत्येतद् गौतमस्वामि' इत्यादि ॥ ११॥ सोप घी नमक ये महँगे हो इनकी मूल्य में वृद्धि आपादादि सात मास तक, अफीम तेज, परदेशमें चोर भय, महाजनको पीडा, पहले वर्षा हो पीछे एक मास वर्षा न हो, पहले महँगा पीछे मुभिक्ष, नमक में मूल्य वृद्धि पन्द्रह दिन तक चित्रदुर्ग में युद्ध, मनुष्यको पीडा, धनकी हानि, मालवा में रोगपीडा, पहला वर्ष भयंकर पीछे शुभ और राशिभोग के अन्तमें देशका नाश ॥ १० ॥ जब कुंभ राशिका शनि हो तत्र दक्षिण कुंकणदेशमें बडा विग्रह, राजा का क्षय, प्रजाको भय, धनका नाश, राशिभोगसे सातमास तक सब धान्य तेज, आषाढादि पांच मास तक गेहूँ चणा मसूर जुवार चावल उर्द, बटाना, तुअरी, कांगणी चौला बाजरी आदि तेजभाव, दुष्काल, मात्र में प्रबल वर्षा जिससे धान्यका विनाश, छत्रभंग, फाल्गुन चैत्रसे वस्तुका और धान्य का "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy