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________________ ८४ जन्मसमुद्रः अथ वन्ध्यास्त्रीवृद्धभार्यायोगमाह वन्ध्या भसन्धौ शुक्रेऽस्ते मन्देऽङ्ग नेष्टहासुते । वृद्ध ष्टेक्ष्यास्तगाराोरेकग: स्त्रीनृखेटयोः ॥२०॥ शुक्रे ऽस्ते सप्तमस्थे भसन्धौ कर्कमीनवृश्चिकानामेकतमस्य नवांशस्थे च सति, मन्दे शनौ अङ्ग मकरवृषकन्यानामेकतमे लग्ने, सुते पञ्चमस्थाने यदि नेष्टदृक् इष्टस्य शुभस्य दृक् दृष्टिस्तदुहिते युतिरहिते च सति तदा स्त्री भार्या वन्ध्या स्यात् । अथैकगस्त्रीनृखेटयोः एकराशिगतस्त्रीनरग्रहद्वयोरिष्टेक्ष्यास्तगारार्योः इष्टाः शुभास्तरीक्ष्यौ यो अस्तं सप्तमं तत्र गतौ यौ आरार्की भौमशनी तयोः सतोः वृद्धा स्त्री तस्य वृद्धत्वे वृद्धाभार्या भवतीत्यर्थः ॥२०॥ इति वृत्तिबेडायां जातकसमुद्रविवृतौ षष्ठः कल्लोलः ।।६।। सातवें स्थान में रहा हुअा शुक्र यदि कर्क, वृश्चिक या मीन के नवमांश में हो, शनि वृष, मकर या कन्या का होकर लग्न में रहा हो और पांचवें स्थान में कोई शुभ ग्रह न हो या उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि भी न हो तो स्त्री वंध्या होती है। अथवा सातवें स्थान में शनि और मगल एक साथ हो और उनको शुभ ग्रह देखते हो तो जातक को वृद्धावस्था में वृद्ध स्त्री मिले ॥२०॥ इति श्रीनरचंद्रोपाध्याय विरचित जन्मसमुद्र का छठा कल्लोल समाप्त। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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