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________________ शस्त्रदहनादिभेदेश्वोर्येण वर्त्तते खननवृत्त्या । दशमे घटवरवर्गे भारकवहनेन बाहुबलात् ॥ १२ ॥ दसवें स्थान में कुम्भ राशि हो तो शस्त्रों से, अग्नि से, चोरी से, खोदने के काम से या भुजबल से भार वहन करके अपनी प्राजीविका चलावें ॥१२॥ शास्त्रादुदकाद् योनिप्रपोषरणा दस्त्रविक्रयादेव 1 वर्गे मीनप्रभवे दशमस्थे जायते वृत्तिः ॥ १३ ॥ दसवें स्थान में मीन राशि हो तो शास्त्र से, जल योनि से, प्याऊ से या कर अपनी आजीविका चलावे ॥ १३ ॥ इत्यादिकं फलं सूर्यादिकर्मस्थैश्च ज्ञेयम् । अथ योगान्तरमाह जन्मसमुद्रः शस्त्र बेच तयोरथ खगोsर्कादिः सोऽर्थदः स्वदशां गतः । तातात्तातानुगाच्छत्रो - मित्राद् भ्रातुः स्त्रिया भृतः ॥ ३ ॥ अथैनयोर्लग्नचन्द्रयोर्योऽर्कादिग्रहः खगः कर्मगतः स स्वदशायां गतः सन् प्रर्थदो धनदाता क्रमेण भवति । तद्यथा - लग्नाच्चन्द्राद्वा रविर्दशमस्थो यदि तदा तस्य जातस्य स्वदशायां गतस्तातात् पितुरर्थदो भवति । एवं यदि चन्द्रस्तदा तातानुगात् पितृसेवकाद् धनदः । एवं यदि भौमस्तदा शत्रोः रिपुतोऽर्थदः । एवं यदि बुधो मित्राद् धनदः । एवं यदि गुरुस्तदा भ्रातुः सहोदरात् । एवं यदि शुक्रस्तदा स्त्रियाः स्त्रीतः । एव यदि शनिस्तदा भृतेः कर्मकारादर्थदः स्वदशायाम् । यदा द्वौ बहवो वा ग्रहाः कमंगता भवन्ति तदा त एव स्वदशायां धन दातारः ।।३॥ लग्न अथवा चन्द्रमा से दसवें स्थान में सूर्यादि जो ग्रह हो, उसकी दशा में वह ग्रह धन दायक होता है । जैसे - लग्न या चन्द्रमां से दसवें स्थान में सूर्य हो तो सूर्य की दशा आने से, पिता से धन प्राप्ति होवे । चन्द्र हो तो चन्द्र की दशा में पिता के सेवकों से धन प्राप्ति होवे । इसी प्रकार मंगल हो तो शत्रु से, बुध हो तो मित्रों से, गुरु हो तो भाई से, शुक्र हो तो स्त्री से और शनि हो तो अपनी दशा में सेवकों से धन प्राप्ति होवे । यदि दो या अधिक ग्रह दसवें स्थान में रहे हो तो ये सब अपनी २ दशा में धन देने वाले होते हैं ||३|| अथ योगान्तरमाह "Aho Shrutgyanam" शाश्रितांशपे वाङ्ग न्द्वर्कारणां तदभावके । सूर्याद्यंशगते स्वर्ण तृणोर्णारोगिसेवया ॥४॥ तदभावे लग्नचन्द्रयोस्तस्य दशमस्याभावे कर्मणि शून्ये सति अङ्ग ेन्द्रकरणां लग्नचन्द्रसूर्याणां प्रत्येकस्य खेशाश्रितांशपे यः खेशो दशमपतिस्तेन श्रितो योंऽशो
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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