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________________ ३८ जन्मसमुद्रः दुःशद्व ेन दुष्टाः पापास्तैरीक्षिते सति द्राक् शीघ्र ं मृत्युः । दृगब्दतः वर्षद्वयात् परं शुभादृष्टे सति । एवं चन्द्र तत्रस्थे स्वीक्ष्ये सुशब्देन शुभास्तैरीक्ष्ये दृष्टे पापैरदृष्टे दिगब्दतः, दिशोऽष्टौ तत्संख्याये अष्टास्तेभ्यो मृतिः, वर्षाष्टकादित्यर्थः । एवमत्रस्थे चन्द्र मिश्रेक्ष्ये पापशुभदृष्टे युगाङ्कतो मृत्युः, वर्षचतुष्कादित्यर्थः । वाथवेष्टे शुभे चन्द्रवदेवंविधे सति पूर्वोक्तवन्मृतिः । अथैवंविधयोगस्थे चन्द्र शुभे वा सर्वग्रहदृष्टे सति न मृत्युः । प्रर्थान्तरात् षष्ठेऽष्टमे वा यत्र तत्र राशौ वाब्जे चन्द्र पूर्णेन्दी वा शुभैर्युक्ते दृष्टे वा न मृत्युः । वाथवा सत्पक्षे सतां शुभानां पक्षे वर्गे ग्रहादौ तत्रस्थे षष्ठेऽष्टमे वा चन्द्र शुभदृष्टे सति न मृत्युः । एवंविध योगस्थे पूर्णचन्द्र मिश्रेक्ष्ये सर्वग्रहदृष्टे चेद् यदि शुक्लपक्षे निशि रात्रौ जन्म भवति तदा न मृत्युः, उक्तकाले रिष्टाभावः । षष्ठेऽष्टमे वा चन्द्र मिश्रक्ष्ये सर्वग्रहदृष्टे यदि कृष्णपक्षे दिवा जन्म तदा न मृत्युः । उक्तकाले रिष्टाभावः । एवं राशिनवांशे वा वक्तव्यम् ।।४।। क्षीण चंद्रमा छठे या आठवें स्थान में हो, उसको पाप ग्रह देखते हो और शुभ ग्रह न देखते हो तो दो वर्ष में मृत्यु कहना । छठे या आठवें स्थान में रहा हुआ क्षीण चंद्रमा को शुभ ग्रह देखते हो और पाप ग्रह न देखते हो तो आठ वर्ष बाद मृत्यु कहना । छठे या आठवें स्थान में रहा हुआ क्षीण चंद्रमा को शुभ और पाप दोनों मिश्र ग्रह देखते हो तो चार वर्ष के बाद मृत्यु कहना । इसी प्रकार अन्य कोई शुभ ग्रह चन्द्रमा की तरह हो तो चंद्रमा की तरह फल कहना । उक्त चद्रमा को कोई ग्रह न देखता हो तो उक्त दोष नहीं होगा । यदि चद्रमा शुभ ग्रह के साथ हो या शुभ ग्रह के वर्ग में हो तो अरिष्ट योग नहीं होगा । यदि पूर्ण चंद्रमा छठे या आठवें स्थान में हो या अन्य किसी स्थान में हो, परन्तु शुभ ग्रह के साथ हो या शुभ ग्रह की दृष्टि उन पर हो तो ग्ररिष्ट योग नहीं कहना, छठे या आठवें स्थान में रहे हुए चंद्रमा को कोई भी शुभाशुभ या मिश्र ग्रह देखते हो, परन्तु शुक्लपक्ष की रात्रि में और कृष्णपक्ष के दिन में जन्म हुआ हो तो अरिष्ट का नाश होता है, अर्थात् मृत्यु न होगी ॥४॥ अथ योगान्तरमाह ग्रस्तेऽङ्ग े सयमेऽत्रारेऽष्टमे मात्रा स्त्रियेत सः ॥ संज्ञे चार्केऽस्त्रतो वात्र दुष्टैः कोणेऽष्टरिति ॥ ५ ॥ समीपवत्तित्वात्तत्र चन्द्र ग्रस्ते ग्रहरणकाले राहुग्रस्तेऽङ्गो लग्ने शनियुक्ते सति आरे कुजेऽष्टमे सति मात्रा सह बालो म्रियेत । अर्के च शब्दात् राहुग्रस्ते लग्नस्थे सज्ञे बुधयुते सयमे च कुजेऽष्टमगे सति अस्त्रात् शस्त्रेण मात्रा सह म्रियेत । क्षीणेन्दुयुते सति न योगभंगः । वाथवात्र पूर्णेन्दो रवौ वा ग्रस्ते लग्नस्थे च "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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