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________________ 116 जन्मसमुद्रः सृष्टि की आदि में महा तपस्वी श्री काश्यप नाम का ऋषि था, उसने अपने नाम का काश्यपपुर स्थापित किया। यहाँ बहुत समय से परमारवंशीय राजाओं की राजधानी का स्थान है, जो अनेक तीर्थों का स्थान और अनेक प्रकार के फल वृक्षों से शोभायमान प्राबू गिरिराज का यह प्रथम नगर है। वहाँ श्रीकाशहदनामक गच्छ के नायक श्री देवचन्द्रसूरि हुए, उनके पट्टधर शिष्य श्री उद्योतनसूरि हुए, इनके पट्टधर श्री सिंहसूरि हुए, इनका शिष्य रत्न श्री नरचन्द्र नाम का उपाध्याय है, इसने यह ज्योतिष के योगों का एक मन्दिर स्वरूप जिसमें अक्षर कम और विस्तृत अर्थ वाला जन्म समुद्र नाम का ग्रन्थ रचा। जो इस ग्रन्थ का अध्ययन करेगा वह चिरकाल तक सुखी रहेगा // 23 // श्रीमद्विक्रमवत्सरात् त्रिनयनाघोषेऽत्र वर्षे तपो, मासे शुद्धचतुर्दशी शनिदिने चम्पावतीपट्टने / चैत्येऽकारि कुमारपालनृपतेर्वृत्ति च काशहूदो, पाध्यायो नरचन्द्र इन्दुनृपसपर्यायरूपामिमाम् // 24 // इति श्रीकाशहदगच्छीयश्रीसिंहसूरिशिष्यश्वेताम्बरश्रीन रचन्द्रोपाध्यायकृतायां वृत्तिबेडासज्ञायां जन्मसमुद्र-प्रश्नशतसहोदरायां जन्मसमुद्रवृत्तावष्टमकल्लोलो नाम रज्वादियोग दीक्षा वस्वायुर्योग लक्षणो नामाष्टमः कल्लोलः : / विक्रम संवत् 1323 के वर्ष में माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी शनिवार के दिन चम्पावती (चन्द्रावती 1) पट्टन में कुमारपाल राजा ने बनवाया हुप्रा चैत्य (मंदिर) में निवास करके काशहद गच्छोय श्री नरचन्द्र नाम के उपाध्याय ने अनेक पर्यायवाली इस ग्रंथ की वृत्ति (टीका) की रचना किया // 24 // इति श्रीकाशह्नदगच्छीय श्री सिंहसूरि शिष्य श्वेताम्बर श्रीनरचन्द्रोपाध्याय विरचित जन्मसमुद्र और प्रश्नशतक दोनों ग्रन्थ की बेडा नाम को वृत्ति में यह जन्मसमुद्र ग्रन्थ की बेडा नाम की वृत्ति का रज्वादि योग दीक्षा आयुष लक्षण वाला पाठवाँ कल्लोल समाप्त / "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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