SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० जन्मसमुद्रः अथ यत्र वर्षे धनं स्यादिति ज्ञानमाह यद्ध शोऽभ्युदितो यद्भ तद्धाङ्काब्दे धनं तदा। बलिष्ठोऽङ्ग शरद्याद्ये श्रीरत्यन्तं पुनस्ततः ॥१६॥ यद्भशो यस्य नरस्य भं राशिस्तस्य राशेरीशः स्वामी जन्मकाले यद्भ यत्र राशौ अभ्युदित ः स्यात्, तद्भाङ्काब्दे तस्य राशेर्योऽङ्कस्तत्संख्येऽब्दे वर्षे धन द्रव्यं स्यात् । तत्र काले जातस्य स धनी स्यादित्यर्थः ।। "एकभांशे व्यय: सूते पितुः केशाय वर्षतः। स्वीष्टाकुलद्वये त्वाप्तौ वैरायान्या मुदे भवेत् ॥" अथ इष्टः शुभो बली सर्वबलयुक्तो जन्मपत्र्यां यदि अङ्गे लग्ने भवेद् यदि, तदाद्ये प्रथमे शरदि वर्षे श्रीलक्ष्मीर्भवति । एवं धनस्थे शुभे सबले द्वितीय वर्षे धनं विशेषेण शुभाभ्यां वा शुभेषु लग्नस्थेषु सत्सु प्रथमे वर्षे शुभतरं स्यादेवं सर्वत्र इत्यमुना प्रकारेणान्त्यं व्ययं यावत् पुनरिं वारं वाच्यम् । वर्षे ज्ञाते सति मीनाच्चैत्रमासं परिकल्प्य मासस्य शुभाशुभं शुभाशुभैर॑हैस्तस्य वर्षस्य तस्य बालकस्य कल्प्यम् । अमुमेवार्थ प्रश्नशतश्लोकनाह "मासेऽजादत्र वैशाखात् ग्रहः स्वस्वसमं फलम् । दद्यात्तत्राथ चाङ्ग शो बली भैशोऽथ नात्यये ॥" इति मासज्ञानम् । जातक की जन्म कुन्डली में जन्मराशि का स्वामी (चन्द्रमा के राशि का स्वामी) जिस राशि पर हो उस राशि की संख्या तुल्य वर्ष में जातक को द्रव्य प्राप्त होवे। जैसेचन्द्रमा जिस राशि पर हो उस राशि का स्वामी यदि मेष राशि में हो तो प्रथम वर्ष में, वृष राशि में हो तो दूसरे वर्ष में, इस प्रकार मीन राशि पर हो तो बारहवें वर्ष में धन प्राप्ति होवे। इस प्रकार बार-बार गिनती करना चाहिए । इसी प्रकार बलवान शुभ ग्रह का भी फल जानना । जैसे-बलवान शुभ ग्रह लग्न में हो तो प्रथम वर्ष में, दूसरे स्थान में हो तो दूसरे वर्ष में, एवं तीसरे स्थान में हो तो तीसरे वर्ष में, इस प्रकार बारहवें स्थान में हो तो बारहवे वर्ष में धन प्राप्ति होवे । इस प्रकार बारबार गिनती करे, एक बार बारह साल में धन प्राप्ति न हुई हो तो फिर तेरहवें वर्ष से गिनती करना चाहिए। वर्ष का ज्ञान होने के बाद उस वर्ष में किस मास में धन प्राप्ति होवे। तो मास की गिनती मेष राशि का सूर्य हो तो वैशाख, वृष का सूर्य हो तो जेष्ठ, इस प्रकार मीन का सूर्य हो तो चैत्र मास "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy