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________________ सप्तम कल्लोलः ४१ देखता हो तो वह स्त्री गुह्य रोग वाली होवे। सातवां भवन यदि शुभ ग्रह के नवांश का हो, उसको शुभ ग्रह देखते हों तो वह स्त्री निरोगी और पतिव्रता होवे ॥११॥ अथ सप्तमे ग्रहजिते सत्यर्कादीनां राशौ नवांशे वा सप्तमस्थे सति यादृशो भवतीति ज्ञानमाह- . भेंऽशेऽर्कादेमदुः कर्मी कामी दुर्वाक् चल: कुधीः । सद्विद्वांसौ गुणी कान्ताऽभीष्टो वृद्धो जडोऽस्तगे ॥१२॥ अर्कादेर्भे राशौ अंशे नवांशे वास्तगे सप्तमस्थे क्रमेण फलं वाच्यम् । यथासप्तमेऽर्कभे राशौ सिंहेऽथवा सिंहाशे वास्तगे सप्तमगे सति या जाता तस्या भर्ता मृदुरकठिनः कर्मी व्यापारकरणशोलश्च । प्रादिशब्दादेवं चन्द्र राशौ कर्के कर्काशे वा सप्तमस्थे कामी कामातुरः । दुर्वागप्रियवादी भर्ता एवं भौमे मेषवृश्चिके राशौ वा तदंशे वा सप्तमे सति या जाता स्त्री तस्या भर्ता चलः स्त्रीलीलः क्रुधीः कोपनशीलश्च । एवं बुधस्य राशौ कन्या मिथुने वा तदशे वा सप्तमे सति सन् साधु : वित्वेत्ति सर्वशास्त्राणीति वित् । एवं गुरुराशौ धनुर्मीनयोरेकतमे तदंशे वा सप्तमे दान्तो जितेन्द्रियः गुणी गुरणा गांभीर्यादयो विद्यन्ते यस्य गुणवानित्यर्थः । एवं शुक्रस्य राशौ वृषतुलयोरेकतमे तदंशे वा सप्तमस्थे कान्तोऽतीव सौभाग्ययुक्तः अभीष्टः सर्वजनवल्लभो विनीतत्वात् । एवं शनेमकरकुम्भयोरेकतमे राशौ तदंशे वा सप्तमे वृद्धोऽतिवया जडो मूर्खश्च भर्ता स्यात् । यदि सप्तमेऽन्य सम्बन्धो राशिरन्यस्य नवांशो भवेत् तदा तयोर्यो बलवांस्तदीयं फलं वाच्यम् ।।१२।।। सूर्यादि ग्रहों की राशि या उनका नवमांश सातवें भवन में हो उसका क्रम से फल बतलाते हैं-जन्म लग्न से सातवें स्थान में सूर्य की मेष राशि या मेष का नवांश हो तो उस स्त्री का पति मृदु कार्य अर्थात् व्यापार करने में चतुर होवे । चन्द्रमा की राशि कर्क या कर्क का नवमांश हो तो उसका पति कामातुर और अप्रियवादी होवे । मंगल की मेष या वृश्चिक राशि या उसका नवांश हो तो उसका पति स्त्री लोलुप और क्रोधी होवे । बुध की राशि कन्या या मिथुन या उसका नवांश हो तो पति विद्वान होवे। गुरु की धन या मीन राशि या उसका नवांश हो तो गुणवान पति होवे । शुक्र की राशि वृष या तुला या उसका नवांश हो तो अधिक मनोहर और सौभाग्यवान सर्वजनवल्लभ पति होवे। एवं शनि की. मकर या कुम्भ राशि हो या उसका नवांश हो तो वृद्ध और मूर्ख पति मिले ॥१२॥ प्रथ स्त्रीयोगान्तरमाह अङ्ग सितेन्द्वोः स्त्री सेा सुखा जेंद्वो कलागुणाः। शुक्रज्ञयोः प्रियाभीष्टा सार्थसौख्या शुभेषु सा ॥१३॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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