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________________ प्रास्ताविक निवेदन । ३. ग्रन्थरचनाकी कालावधि ग्रन्थकी इस प्रकार खण्डशः रचना होते रहनेके कारण सारे ही संग्रहके संपूर्ण होनेमें बहुत दीर्घ समय व्यतीत हुआ मालूम देता है । कमसे कम ३० से अधिक वर्ष जितना काल लगा हुआ होगा । क्यों कि, जिन कल्पोंमें रचनाका समय-सूचन करनेवाला संवत् आदिका उल्लेख है, उनमें सबसे पुराना संवत् १३६४ मिलता है जो वैभारगिरिकल्प [क० ११, पृ० २३ ] के अन्तमें दिया हुआ है। ग्रन्थकारका किया हुआ ग्रन्थकी समाप्तिका सूचक जो अन्तिमोल्लेख है, उसमें संवत् १३८९ का निर्देश है । इससे २५ वर्षोंके जितने कालका सूचन तो, स्वयं प्रन्थके इन दो उल्लेखोंसे ही ज्ञात हो जाता है; लेकिन वैभारगिरि कल्पके पहले भी कुछ कल्पोंकी रचना हो गई थी, और संवत् १३८९ के बाद भी कुछ और कल्प या कृति अवश्य बनी थी, जिसका कुछ स्पष्ट सूचन ग्रन्थगत अन्यान्य उल्लेखोंसे होता है । इसी कारणसे, प्रन्थ-समाप्ति-सूचक जो कथन है वह, किसी प्रतिमें तो कहीं मिलता है और किसी में कहीं। और यही कारण, प्रतियोंमें कल्पोंकी संख्याका न्यूनाधिकत्व होनेमें भी है। ६४. ग्रन्थगत विषय-विभाग ___ इस ग्रन्थमें, भिन्न भिन्न विषय या स्थानोंके साथ सम्बन्ध रखनेवाले सब मिला कर ६०-६१ कल्प या प्रकरण हैं । इनमें से, कोई ११-१२ तो स्तुति-स्तवनके रूपमें हैं, ६-७ चरित्र या कथाके रूपमें हैं, और शेष ४०-४१, न्यूनाधिकतया, स्थानवर्णनात्मक हैं । पुनः, इन स्थानवर्णनात्मक कल्पोंमेंसे, चतुरशीति महातीर्थनामसंग्रह जो कल्प [ क्रमांक ४५ ] है उसमें तो प्रायः सभी प्रसिद्ध और ज्ञात तीर्थस्थानोंका मात्र नामनिर्देश किया गया है। पार्श्वनाथकल्प [क्र० ६ ] में पार्श्वनाथके नामसे सम्बद्ध ऐसे कई स्थानोंका उल्लेख है । उज्जयन्त अर्थात् रैवतगिरिका वर्णन करने वाले भिन्न भिन्न ४ कल्प [ क्र.२-३-४-५7 हैं। स्तंभनक तीर्थ और कन्यानयमहावीर तीर्थके सम्बन्धमें दो दो कल्प हैं। इस प्रकार, अन्य विषय वाले तथा पुनरावृत्ति वाले जितने कल्प हैं उनको छोड कर, केवल स्थानोंकी दृष्टिसे विचार किया जाय तो, इस ग्रन्थमें कुल कोई ३७-३८ तीर्थ या तीर्थभूत स्थानोंका, कुछ इतिहास या स्थानपरिचय-गर्मित वर्णन दिया हुआ मिलता है। ६५. स्थानोंका प्रान्तीय विभाग यदि इन सब स्थानोंको प्रान्त या प्रदेशकी दृष्टिसे विभक्त किये जायं तो इनका पृथक्करण कुछ इस प्रकार होगागूजरात और काठियावाड राजपूताना और मालवा शQजयमहातीर्थ [क्र. १] अर्बुदाचलतीर्थ [क्र० ८] उज्जयन्त ( रैवतगिरि ) तीर्थ [क्र० २-३-४-५] सत्यपुरतीर्थ [क्र० १७ ] अश्वावबोधतीर्थ [क० १०] शुद्धदन्तीनगरी [ ऋ० ३१] स्तंभनकपुर [क्र. ६, ५९] फलवर्द्धितीर्थ [क्र० ६०] अणहिलपुरस्थित अरिष्टनेमि [क्र० २६] ढीपुरीतीर्थ | क्र०४३-४४१ 1 कोकावसति [क्र. ४०] कुडुंगेश्वरतीर्थ [क० ४७] शंखपुरतीर्थ [क्र. २७ ] अभिनंदनदेवतीर्थ [क्र० ३२] हरिकखीनगर [क्र० २९] अवध और बिहार युक्तप्रान्त और पंजाब वैभारगिरि [क्र. ११] अहिच्छत्रपुर [क्र० ७] पावा या अपापापुरी [क्र० २१, १४] हस्तिनापुर [क्र० १६, ५०] पाटलीपुत्र [क० ३६]
SR No.009519
Book TitleVividh Tirth Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Gyanpith
Publication Year1934
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size5 MB
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