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________________ ३३. मनुष्यलोक boy.pm5 2nd proof एक जम्बूद्वीप है । उसमें एक मेरु है, तीन कर्मभूमि है। छह अकर्मभूमि है, चार महाविदेह है । एक धातकीखण्ड है । उसमें दो मेरु है । छह कर्मभूमि है, बारह अकर्मभूमि है । आठ महाविदेह है । एक पुष्करवरार्ध है । उसमें दो मेरु है। छह कर्मभूमि है। बारह अकर्मभूमि है। आठ महाविदेह है । कर्मभूमि : जहाँ असि-मसि - कृषि का व्यापार हो उसे कर्मभूमि कहते है । जहाँ मनुष्य शस्त्रो का उपयोग करते है, लिखने, दोरने की प्रवृत्ति करते हैं और खेतीकाम, व्यापार आदि करते हैं वह कर्मभूमि है । जहाँ से मोक्ष जा सकते हैं वह कर्मभूमि है | अकर्मभूमि : जहाँ असि मसि - कृषि का व्यापार नहीं होता उसे अकर्मभूमि कहते है । जहाँ मनुष्य शस्त्रों का उपयोग नहीं करते। लिखने दोरने की प्रवृत्ति नहीं होती । खेतीकाम और व्यापार के बिना चल सकता है उसे अकर्मभूमि है । मनुष्यलोक की बात करने के बाद अब देवलोक की बात करेंगे । *** बालक के जीवविचार • ६३ ३४. देवों के १९८ भेद ऊर्ध्वलोक में देवगति है, जो देवगति में जन्म लेता है वह देव कहलाता है । देवों के १९८ भेद है। ये भेद देवलोक के अलग-अलग स्थानों के आधार पर निश्चित हुए है । अनुत्तर देव ग्रैवेयक देव वैमानिक देव लोकान्तिक देव किल्बिषिक देव चर ज्योतिष देव स्थिर ज्योतिष देव वाणव्यन्तर देव व्यन्तर देव परमाधामी देव भवनपति देव तिर्यक्भक देव कुल देव देवों के ९९ भेद पर्याप्ता ९९ भेद अपर्याप्ता कुल १९८ भेद होते हैं । याद रखो : ५ ९ ६४ • बालक के जीवविचार १२ ९ ३ ५ ५ ८ ८ १५ १० १० ९९ देव करण अपर्याप्ता होते हैं । लब्धि अपर्याप्ता नहीं होते । देव पर्याप्ति पूर्ण न करे वहाँ तक अपर्याप्त कहलाते हैं । देव पर्याप्ति पूर्ण कर ले तब पर्याप्त कहलाते हैं। देव पर्याप्त अधूरी रखकर मरे ऐसा कभी नहीं बनता ।
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
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