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________________ १८. पंचेन्द्रिय तिर्यंच पशु, जानवर, प्राणी, जनावर ये इनकी पहचान है। तिर्यच को पाँच इन्द्रिय और मन होता है। तिर्यंच के तीन विभाग है। १. जलचर, २. स्थलचर, ३. खेचर १. पानी में जीवन बीताने वाले प्राणी को जलचर तिर्यंच कहते हैं। जलचर तिर्यंच की जिन्दगी का ज्यादा से ज्यादा समय पानी में बीतता है। जलचर तिर्यंच में कुछ जीव तो ऐसे होते हैं कि वो सिर्फ पानी में ही जी सकते हैं। उनको पानी से बहार निकाल दिया जाए तो तडपने लगते हैं और मर भी जाते हैं । मछली, मगरमच्छ, कछुआ, ग्राह, बड़े मगरमच्छ, सुंसुमार, ये और ऐसे दूसरे सभी जलचर तियंच पंचेन्द्रिय है । २. जमीन पें जीवन व्यतीत करनेवाले प्राणी को स्थलचर कहते हैं। इन तिर्यंचों की जिन्दगी का ज्यादा से ज्यादा समय जमीन में व्यतीत होता है । गुफाओं में, जंगल वृक्ष और झाड़ी तथा दरों में उनका निवास होता है। स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय के तीन प्रकार हैं। boy.pm5 2nd proof १. चतुष्पद, २. उरपरिसर्प, ३. भुजपरिसर्प १. चार पैरों वाले पशुओं को चतुष्पद कहते हैं। घर में पालने योग्य निर्दोष प्राणीओं और जंगल में रहनेवाले हिंसक पशुओं का चतुष्पद में समावेश होता है । + + गाय, भैंस, बकरी, ऊँट, घोड़ा, गधा, ये सभी पालतु पशु हैं । बिल्ली, कुत्ते, लोमडी, शेर, सिंह, चित्ता, रींछ [भालू], बन्दर ये जंगली पशु हैं, उनके नाखून और दाँत उनकी हिंसकता की गवाही देते हैं । + हाथी, हिपोपोटेमस जैसे विशाल कायावाले पशु भी चतुष्पद हैं । २. पंचेन्द्रिय होने के बावजूद भी जिनके हाथ-पैर न हो ऐसे तिर्यंच को उरपरिसर्प कहते हैं, ये पंचेन्द्रिय जीव पेट से गति करते हैं । + साँप, अजगर विगेरे को उरपरिसर्प कहते हैं । ३. भुजपरिसर्प को दो पैर और दो हाथ होते हैं, चलने के लिए वो हाथ का बालक के जीवविचार • २७ भी उपयोग करते हैं । चूहा, छिपकली, गिलहरी विगेरे ३. खेचर यानी अपनी पंख द्वारा जो आकाश में उड़ सके। हम उनको पक्षी के रुप में पहचानते हैं। ये पक्षी दो प्रकार के होते हैं। जिनकी पाँखे रोमराजी यानी पींछी से बनी हो ऐसे पंखी और जिनकी पाँखों में रोमराजी के बदले सिर्फ चमडी हो ऐसे पक्षी । + + + १. २. + मनुष्य लोक के बहार दूसरे दो प्रकार के पक्षी होते हैं । कुछ पक्षियों की पंख हमेंशा खुल्ली होती है, बन्द होती ही नहीं है, इनको वितत पंखी कहते हैं । कुछ पक्षियों के पंख हंमेशा बन्द होती है, कभी खुलती ही नहीं है, इनको समुद्गपंखी कहते हैं । इन पक्षियों को हम कभी नहीं देख सकते । कबूतर, कोयल, कौआ विगरे पक्षियों को रोमराजी की पाँखे हैं, वो रोमज पक्षी है । चमगादड़ जैसे पक्षियों को चमडी की पाँख होती है, वे चर्मज पक्षी है। इन पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों को अपना शरीर अपना जीवन और अपनी हर शक्ति खूब प्रिय है, इसमें से किसी को भी नुकशान हो तो इन जीवों को वेदना होती है दवा, साबुन, शेम्पू, टुथपेस्ट, टुथपावडर, बेल्ट, पर्स कपड़े विगेरे में कईबार तिर्यंच् पंचेन्द्रिय जीवों के मृतशरीर से नीकाले हुए द्रव्य का उपयोग होता है। अगर हम ध्यान न रखे और ऐसी मिलावट वाली वस्तु का उपयोग कर ले तो इन जीवों की हत्या का पाप लगता है । मैं जैन हूँ । पंचेन्द्रिय तिर्यंच् जीवों की विराधना न हो उसके लिए मुझे सावधान होना चाहिए । जीवदया का पालन करने के लिए मैं हरपल जागृत रहूँगा । २८ • बालक के जीवविचार
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
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