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________________ १६. पंचेन्द्रिय मनुष्य पाँचों प्रकार की अनुभव शक्ति से सम्पन्न हो, वह पंचेन्द्रिय मनुष्य. पंचेन्द्रिय मनुष्य के पास, चमडी, जीभ, नाक, आँख और कान द्वारा अनुभव पाने की स्वतन्त्र पाँच शक्तियाँ होती है । + + + + + boy.pm5 2nd proof + पंचेन्द्रिय मनुष्य के पास मन होता है। समझना, सोचना, याद रखना, सवाल और जवाब तैयार करना। खुश होना, नाराज होना ये सारी संवेदना मन द्वारा पंचेन्द्रिय मनुष्य पाता है । पंचेन्द्रिय मनुष्य को दो हाथ और दो पैर होते हैं । पंचेन्द्रिय मनुष्य त्रस है। वो अपनी मर्जी से हलन चलन और आनाजाना कर सकते हैं । पंचेन्द्रिय मनुष्य का जन्म माता की कुक्षि से होता है। जन्म से पहले उसको कुछ समय तक माता की कुक्षि में रहना पड़ता है । पंचेन्द्रिय मनुष्य- पुरुष, स्त्री और नपुंसक इन तीनों में से किसी एक रुप में अपना जीवन बिताते हैं । पंचेन्द्रिय मनुष्य अच्छे से अच्छा पुण्य उपार्जित कर सकता है । पंचेन्द्रिय मनुष्य खराब से खराब पाप बाँध सकता है । पंचेन्द्रिय मनुष्य सुन्दर से सुन्दर धर्म कर सकता है । पंचेन्द्रिय मनुष्य खराब से खराब अधर्म कर सकता है । पंचेन्द्रिय मनुष्य को अपना जीवन अपना शरीर, अपनी हर अनुभव शक्ति बहुत प्रिय है । इसमें से किसी को भी नुकशान हो तो इसको वेदना होती है । पंचेन्द्रिय मनुष्य के पास मन है, विचार और भावना के साथ वह जीता है । उसके विचार और भावना तूट जाए तो भी उसे वेदना होती है । मैं जैन हूँ। पंचेन्द्रिय मनुष्य को वेदना हो ऐसी कोई प्रवृत्ति मेरे हाथों से हो तो मेरा धर्म लज्जित होता है। पंचेन्द्रिय मनुष्य को वेदना न हो उसके लिए मैं जागृत रहूँगा । बालक के जीवविचार • २५ १७. पंचेन्द्रिय देव देव, देवता, दिव्य आत्मा, दैवी तत्त्व । पंचेन्द्रिय देवों की ये पहचान है । देवगति या देवलोक में जन्म ले वह देव । पाँच इन्द्रिय और मन, देवको होते हैं। + देवों के पास विशेष प्रकार की शक्ति होती है। हम को समझ में न आए वैसे चमत्कारों का सर्जन करते हैं। इस शक्ति को वैक्रिय लब्धि कहते हैं । देव अपने हजारों रुप भी बना सकते हैं और एकदम अदृश्य भी हो जाते हैं। उनकी गति भयंकर होती है। एक सेंकड में अहमदाबाद से मुंबई पहुँच सकते हैं। उनका शरीर अतिशय सुन्दर और तेजस्वी होता है । उनकी शक्ति और प्रभाव प्रचण्ड होते है। देव जमीन पर नहीं चलते। वे आकाश में चल सकते हैं और उड़ सकते हैं । वे पृथ्वी पर आते हैं तब जमीन से चार अंगुल उपर ही रहते हैं । देवों को पसीना नहीं होता। देवों को कोई रोग नहीं होता। देवों की आँखें हमेंशा के लिए खुल्ली रहती है। हमारी तरह पलकों को बन्द करना और खोलने का काम देव नहीं करते। उनकी आँखों में आँसू नहीं आते । देवों का रहने का स्थान दिव्य विमान या भवनों में होता है। वे अपने प्रभाव से नये विमानों का निर्माण कर विश्वभर में घूमने जा सकते हैं। + वे देव अथवा देवी स्वरुप में अपना आयुष्य बिताते हैं । देवों के चार प्रकार होते हैं । (१) भवनपति, (२ ) व्यंतर, (३) ज्योतिष, (४) वैमानिक + देवों को अपना जीवन अपना शरीर अपनी हर शक्ति प्रिय होती है, इन चारों में से किसी की भी हंसी-मजाक करते हैं, उपहास करते हैं तो देव नाराज होते हैं। दूसरों को नाराज करने से हमको पाप लगता है और दूसरे लोग हमको परेशान भी करते हैं। + + मैं जैन हूँ। पंचेन्द्रिय देवों को परेशान करने की शक्ति मेरे में नहीं है और साथ में इन देवों को परेशान करने की भावना भी मेरे में नहीं है। इन देवों को परेशान करने की या नाराज करने की भूल न हो इसलिए मैं जागृत रहूँगा। २६ • बालक के जीवविचार +
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
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