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________________ अर्थात ये सब जीव ज्यादा से ज्यादा इतनी नरक तक जा सकते है। स्त्रियाँ १ से ६ तक कोई भी नरक में जा सकती है पर सातवी नरक में नहीं जा सकती । ५२) अलग अलग संघयण वाले जीव की नरकगति : कौनसे संघयण वाले जीव कौनसी नरक तक जा सकते है यह बताने के लिये प्रथम संघयण के बारे में जानना जरुरी है। संघयण अर्थात शरीर की हड्डियों की मजबुताई । छेव - सेर्वात संघयण वाला जीव ज्यादा से ज्यादा दुसरी नरक तक जा सकते है। किलीका संघयण वाला जीव... ज्यादा से ज्यादा चौथी नरक तक जा सकता है। पाँचवी नरक तक नाराच संघयण बाला जीव... छड़ी नरक तक ऋषभ नाराचसंघयण वाले जीव । ज्यादा से ज्यादा सातवी नरक तक जा सकते है वज्रऋषभ नाराच संघयण वाला (उच्च संघयण है) । पुण्य दिशा-विदिशा स्थितनरकावासा आनी पंक्ति - उंचाई ३००० यो. हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! 0 3. प्रकृति होती है। मोक्ष जाने के लिये जरूरी है। तीर्थंकर, चक्रवर्ति ६३ शलाका पुरुषों को यह संघयण मिलता है, इस संघयण का दुर उपयोग कर सत्ता के मद से चक्रवर्ति भी सातवी नरक में गये। त्रिपुष्ठ वासुदेव के भव में सत्ता के मद के कारण भगवान वीर का आत्मा मर कर सातवी नरक में गया। तंदुलीया मच्छ मगरमच्छ के नयन की पलक पर रहता था । वह अति संकलिष्ट परिणाम से अंतमूर्हत में मर कर सातवी नरक में जाता है। वर्तमान काल में इन अंतीम संघयणवाले (छेवडू) जीव है इसलिये दुसरी (२) नरक से आगे नहीं जा सकते । ५३) नरक में से निकला हुआ जीव क्या बन सकता है ? (44) पहली नरक से आया हुआ जीव चक्रवर्ति बन सकता है। दुसरी नरक से आया हुआ जीव बलदेव और वासुदेव हो सकता है । प्रथम तीन नरक में से आया हुआ जीव तीर्थंकर हो सकता है। • प्रतरनी लंबाई- पहोबाई लगभग ९ राज प्रमाण आ चित्र एकप्रतरवर्ति रहेला नरकावासाओने ज्यारे तेनी सामे उभा रहीने, दूरधी जातो, जे लागेनेरी दोस्वामी आयु के. • चित्रनो मध्य भागमा 'इन्द्र नरकावासी छे तेने फरता दिशाना चार अने विदिशाना यार मळी प्रारंभना आठ पंक्तिबद्ध आवाज बताया छे. त्यार पछी पंक्तिगत रहेला त्रिकोण, बाद चोखुण, बाद गोळ, ए क्रमसंनिविष्ट आबासो बताया है, • पंक्तिबद्ध आवासनी प्रधानता होवाथी पुष्पावकीर्ण बताच्या नथी. • नोचना भागे बने बाजुए, विशेष समजण माटे, पूर्ण नरकावासना ख्याल आपती चित्रो बताव्यां छे. [गाथा २३१, पृष्ठ- ४५३/ 四 41. स्थापि
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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