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________________ योग्यानुपलब्धि हम उनका अभाव नहीं मानते। जिस वस्तु की जिस परिस्थिति में उपलब्धि होनी चाहिए, उस परिस्थिति में उसकी उपलब्धि नहीं होने से ही उसका अभाव जाना जाता है। इस तरह अभाव ज्ञान का कारण योग्यानुपलब्धि (अर्थात् प्रत्यक्ष-योग्य वस्तु का प्रत्यक्ष नहीं होना) है। हिरियन्ना ने ठीक ही लिखा है कि यह अभाव का, जैसे किसी स्थान में घट का या परमाणुओं के न होने का ज्ञान कराने वाला विशिष्ट प्रमाण है। न्याय की तरह भट्ट सम्प्रदाय भी अभावात्मक तथ्यों को मानता है, लेकिन उसके विपरीत यह उनके ज्ञान के लिए एक स्वतन्त्र प्रमाण मानता है। "अनपलब्धि' शब्द का अर्थ है पिछले पांच प्रमाणों में से किसी से भी ज्ञान का न होना। इसका मतलब यह है कि जिस प्रकार इन पांच प्रमाणों से प्राप्त ज्ञान वस्तुओं के भाव की ओर इशारा करता है, उसी प्रकार ऐसे ज्ञान का अन्य हेतुओं के समान रहते हुए न होना वस्तुओं के अभाव की ओर इशार करता है। केवल इतना याद रखना चाहिए कि यदि ज्ञान के अभाव को वस्तु के अभाव का सूचक होना है तो उसके साथ-साथ संबंधित वस्तु का मन में प्रत्यक्ष भी होना चाहिए। किसी स्थान-विशेष में अनेक वस्तुओं का अभाव हो सकता है, लेकिन हम उनमें से केवल उसी वस्तु के अभाव की बात सोचते हैं, जिसकी बात सोचने के लिए कोई अन्य परिस्थिति हमें बाध्य करती है। नैयायिक अभावों को उनके प्रतियोगियों के दृश्य या अदृश्य होने के अनुसार दो वर्गों में रखता है। पहले प्रकार के अभावों के ज्ञान का साधन वह प्रत्यक्ष को मानता है और दूसरे प्रकार के अभावों के ज्ञान का साधन अनुमान को। मीमांसा अभाव के इन दोनों ही प्रकारों के ज्ञान का साधन छठे प्रमाण अनुपलब्धि को मानती है। उसके अनुसार कोई भी अभाव प्रत्यक्ष से ज्ञेय नहीं है। इसका कारण यह बताया गया है कि प्रत्यक्ष के लिए जो 'इन्द्रियार्थ-सन्निकर्ष' आवश्यक होता है, वह अभाव के मामले में संभव नहीं है। दूसरा कारण यह बताया गया है कि अनेक दृष्टान्तों में ज्ञानेन्द्रियों के सक्रिय न होने पर भी प्रत्यक्ष योग्य वस्तुओं के अभाव का ज्ञान होता देखा जाता है। जैसे हो सकता है कि एक विशेष दिन सवेरे एक व्यक्ति ने हाथी की बात सोची भी न हो, लेकिन बाद में किसी कारणवश उसे यह ख्याल हो आया हो कि सवेरे उसने हाथी नहीं देखा था। इस ज्ञान के भूतकाल से संबंधित होने के कारण ज्ञान के समय होने वाले ज्ञानेन्द्रियों के व्यापार से इसका सम्बन्ध नहीं जोड़ा जा सकता। सुबह के समय का उनका व्यापार भी उसका कारण नहीं हो सकता, क्योंकि अभाव के प्रतियोगी, हाथी की बात प्राक्कल्पनातः उस समय सोची ही नहीं गई थी और इसलिए उसके अभाव का ज्ञान हो ही नहीं सकता था। अतः अभाव का ज्ञान कराने वाले प्रमाण को अनुमान के अन्दर भी नहीं लाया जा सकता, क्योंकि ऐसा करने के लिए व्याप्त इस वाक्य को मानना पड़ेगा, "जहां भी अन्य परिस्थितियों के समान रहते हुए किसी वस्तु के ज्ञान का अभाव होता है, वहां उस वस्तु का भी अभाव होता है। इस व्याप्ति में दो अभाव-पदों का सम्बन्ध जोड़ा गया है और चूंकि व्याप्ति को अन्ततः प्रत्यक्ष यसभव नहीं सक्रिय न हो सकता है बाद में किसी। इस ज्ञान व्यापार में इसका 62
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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