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________________ जैमिनि ने तीन प्रमाणों की स्वीकृति दी है, जो भाष्यकर्ता शवर की उक्ति से स्पष्ट है किन्तु बाद के मीमांसक प्रभाकर ने पांच और कुमारिल भट्ट ने छ: प्रमाणों को आवश्यक माना है। फिर भी डॉ. राधाकृष्णन् ने लिखा है कि "वृत्तिकार का अनुसरण करते हुए कुमारिल अनुपलब्धि को ज्ञान का एक स्वतन्त्र साधन स्वीकार करता है। कुमारिल भट्ट ने अन्य प्रमाणों की तरह इसे भी स्वतंत्र प्रमाण के रूप में दर्शाया है। किसी विषय के अभाव के साक्षात् ज्ञान (Immediate Knowledge) को ही 'अनुपलब्धि' कहते हैं। अद्वैत वेदान्तियों ने भी इसे एक स्वतन्त्र प्रमाण के रूप में अपनाया है। अभी इस कक्षा में विद्यार्थी नहीं हैं। यहां विद्यार्थियों के अभाव का ज्ञान हमें अनुपलब्धि द्वारा ही हो पाता है। यह ज्ञान किसी अन्य साधन द्वारा संभव नहीं है। प्रभाकर मीमांसा, न्यायदर्शन एवं सांख्यदर्शन के अनुसार अनुपलब्धि को एक स्वतन्त्र प्रमाण नहीं कहा जा सकता है। इनके अनुसार इसका अन्तर्भाव 'प्रत्यक्ष' में किया जा सकता है। किन्तु मीमांसक इस मत का खंडन करते हैं। भट्ट मीमांसा और अद्वैत वेदान्त का मत है कि किसी विषय के अभाव का जो साक्षात् ज्ञान होता है, वह अनुपलब्धि प्रमाण के द्वारा ही होता है। इस कोठरी में घड़ा नहीं है। यहां घर का अभाव मुझे कैसे विदित होता है? अतएव भट्टमीमांसक और अद्वैत वेदान्तियों का कहना है कि यहां घटाभाव का ज्ञान घट की अनुपलब्धि (अदर्शन) के कारण होता है। यह प्रत्यक्ष से नहीं जाना जा सकता है कि कोठरी में घड़ा नहीं है। जिस तरह उपर्युक्त ज्ञान प्रत्यक्ष की कोटि में नहीं आता, उसी तरह अनुमान की कोटि में भी नहीं आता है। यदि ऐसा कहा जाता है कि घर का अभाव घर के अदर्शन से अनुमान किया जाता है तो वह संगत नहीं होगा क्योंकि ऐसा अनुमान तभी संभव होता जब हमें अदर्शन (अनुपलब्धि) और अभाव में व्याप्ति-सम्बन्ध का ज्ञान रहता अर्थात् जब हमें ऐसा ज्ञान रहता कि जिस वस्तु का दर्शन नहीं होगा, उसका अभाव रहता है। परन्तु यदि ऐसा मान लें तो आत्माश्रय दोष (Petitioprincipii) उपस्थित हो जाएगा क्योंकि जो सिद्ध करना है, उसे हम पहले ही मान लेते हैं। इसी तरह ज्ञान शब्द या उपमान के अन्तर्गत भी नहीं आता क्योंकि यहां आप्त वाक्य या सादृश्य ज्ञान नहीं है। इस प्रकार घटाभाव ("यहां घड़ा नहीं है") का जो साक्षात ज्ञान हमें प्राप्त होता है, उसकी उपपति करने के लिए हमें स्वतन्त्र प्रमाण मानना होगा। उपमान भी नहीं है, क्योंकि सादृश्य अथवा संज्ञा-संज्ञी सम्बन्ध का अनुभव नहीं होता है। इसीलिये इसको 'अनुपलब्धि' कहते हैं। इस सम्बन्ध में यह बात द्रष्टव्य है कि अनुपलब्धि मात्र से अभाव सूचित्त नहीं होता। रात्रि के घने अंधकार में घड़ा रहते हुए भी नहीं सूझता। परमाणु, आकाश, पाप, पुण्य आदि अदृश्य पदार्थ भी प्रत्यक्ष नहीं होते। तथापि है कि कोठरी में के कारण कहना है कि यस विदित होताता 61
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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