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________________ प्रमाणों में से किसी के भी अन्तर्गत नहीं रखा जा सकता है। अतः मीमांसक इसे एक स्वतन्त्र प्रमाण मानते हैं। जब कोई ऐसी घटना देखने में आती है जो बिना एक-दूसरे विषय की कल्पना किये समझ में नहीं आ सकती तो उस अदृष्ट विषय की कल्पना को अर्थापत्ति कहा जाता है। जैसे-मान लीजिए देवदत्त दिन में कभी भोजन नहीं करता, फिर भी दिनो-दिन मोटा होता जाता है। अब यहां इन दोनों बातों में उपवास और शरीर पुष्टि में-परस्पर विरोध देखने में आता है। अब इन दोनों विरुद्ध बातों की उपपत्ति तभी संभव हो सकती है जब यह कल्पना कर ली जाए क देवदत्त रात में खुब भोजन करता है। इस तरह की कल्पना के द्वारा विरुद्ध कोटि के विषयों का समन्वय हो जाता है और उनकी संगति बैठ जाने से घटना समझ में आ जाती है। ऐसी ही कल्पना को अर्थापत्ति कहते हैं। अर्थापत्ति के द्वारा उपलब्ध ज्ञान विशिष्ट प्रकार का होता है क्योंकि यह प्रत्यक्ष, अनुमान या शब्द के अन्तर्गत नहीं आता। इस ज्ञान को प्रत्यक्ष नहीं कहा जा सकता, क्योंकि देवदत्त को हमने रात में भोजन करते हुए नहीं देखा है। यहां शब्द प्रमाण भी नहीं क्योंकि किसी आप्त वाक्य के द्वारा हमें यह बात (कि देवदत्त रात में खाता है) मालूम नहीं हई है। इसे अनुमान भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि शरीर के मोटा होने में और रात्रि में भोजन करने में व्याप्ति-सम्बन्ध (अर्थात् जहां-जहां शरीर का मोटापन रहता है, वहां-वहां रात में भोजन करना भी पाया जाता है) नहीं है, जिसके बल पर हम जान सकें कि देवदत्त रात में भोजन करता है। दैनिक जीवन में अर्थापत्ति का बराबर प्रयोग होता रहता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए हम किसी मित्र के घर जाते हैं तो जीवित हैं। वे नहीं मिलते। तब हम सोचते हैं कि "वे कहीं अन्यत्र गये होंगे'। ऐसा हम क्यों सोचते हैं?' ऐसा सोचना अर्थापत्ति के कारण ही संभव हो सकता है। इसी तरह वाक्य का अर्थ लगाते समय भी हम कभी-कभी अर्थापत्ति की सहायता लेते हैं। यदि किसी वाक्य में कुछ शब्द जोड़े बिना अर्थ की संगति नहीं बैठती है तो हम उन शब्दों का अध्याहार कर लेते हैं, जैसे-'लाल पगड़ी को बुलाओ इस वाक्य में 'लाल पगड़ी' से 'लाल पगड़ी वाले मनुष्य' का अर्थ ग्रहण किया जाता है (अर्थात् 'मनुष्य' का अध्याहार कर लिया जाता है)। इसी तरह वह गांव गंगाजी पर है', यहां 'गंगाजी पर का अर्थ लिया जाता है 'गंगाजी के तट पर। यहां मुख्यार्थ की अनुपपत्ति के कारण अर्थापत्ति के द्वारा एक गौण अर्थ ले लेते हैं। ___ अर्थापत्ति की समानता उस वस्तु से है, जिसे पाश्चात्य तर्कशास्त्र में Hypothesis कहते हैं। यह Explanatory Hypothesis सा मालूम होता है। परन्तु भेद यह है कि जहां Hypothesis में अनिश्चितता रहती है, वहां अर्थापत्ति में निश्चितता का भाव रहता है। अर्थापत्ति में विश्वास रहता है कि यहां यही एकमत उपपत्ति कल्पना अथवा संभव है, दूसरी नहीं। अर्थापत्ति को 57
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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