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________________ जैमिनि ने प्रत्यक्ष, अनुमान तथा शाब्द- इन तीन प्रमाणों को स्वीकार किया है।' किन्तु बाद में चलकर प्रभाकर ने उपमान और अर्थापत्ति को भी सम्मिलित कर लिया है। जहां किसी पदार्थ में प्रत्यक्ष की व्याख्या करने के लिए एक अन्य वस्तु की कल्पना आवश्यक हो तो वह 'अर्थापत्ति का विषय है। यह अनुमान से भिन्न है, क्योंकि इस विषय में दृष्टिगत तथ्यों के अन्दर संशय का एक अंश प्रविष्ट होता है, जिसका निराकरण अन्य वस्तु की कल्पना के बिना नहीं हो सकता । जब तक कल्पना नहीं की जाती, देखे गए तथ्य असंगत अथवा संदिग्ध बने रहते हैं। अनुमान में लेशमात्र संशय के लिए स्थान नहीं है। जहां प्रभाकर का यह मत है, वहां कुमारिल का कहना है कि जो दो तथ्य प्रकट रूप में असंगत प्रतीत होते हैं, उनके समन्वय में अर्थापत्ति से सहायता मिलती है। अनुमान में, सुनिश्चित तथ्यों के बीच इस प्रकार की कोई असंगति नहीं होती। डॉ. राधाकृष्णन् का कहना है कि "कुमारिल का विचार अधिक निर्दोष है, क्योंकि देखे गये तथ्य के विषय में यदि कोई संशय है तो वह अर्थापत्तिपरक तर्क की प्रामाणिकता को संदिग्ध बना देगा। जब तक हमें यह निश्चय न हो कि अमुक पुरुष जीवित है और घर पर नहीं है, तब तक हम यह कल्पना नहीं कर सकते कि वह कहीं और है।"67 इस प्रमाण की व्याख्या करते हुए स्वामी दयानन्द ने लिखा है कि इसमें किसी बात के कहने से उसके अर्थरूप में कोई दूसरी बात सिद्ध होती है, जैसे किसी ने किसी से कहा कि बादल के होने से वर्षा और कारण के होने से कार्य उत्पन्न होता है तो इस कथन से बिना कहे यह दूसरी बात सिद्ध होती है कि बिना बादल वर्षा और बिना कारण कार्य कभी नहीं हो सकता है। "जब कोई ऐसी घटना देखने में आये जो बिना किसी दूसरी घटना की कल्पना किये समझ में न आये तो कल्पना की गई घटना अर्थापत्ति कही जाती है ।" उदाहरण के लिए मान लें कि राम उपवास कर रहा है, किन्तु उसका मोटापन बढ़ता जा रहा है । साधारणतः ऐसा देखा जाता है कि उपवास और मोटापन बढ़ने में विरोध रहता है। यहां राम के उपवास करने के साथ-साथ मोटा होने की बात समझ में नहीं आती। इसके लिए कल्पना करते हैं कि वह अवश्य रात को पौष्टिक भोजन कर लेता है। उसके रात के भोजन करने की घटना की कल्पना कर लेने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है। यही 'अर्थापत्ति' है । मीमांसकों के अनुसार अर्थापत्ति के द्वारा प्राप्त ज्ञान अन्य साधनों (जैसे- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द) द्वारा प्राप्त ज्ञान से सर्वथा भिन्न है । राम को रात के समय भोजन करते नहीं देखा गया, इसलिए यह प्रत्यक्ष नहीं है । यह अनुमान भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि रात के भोजन करने एवं मोटापन में व्याप्ति-सम्बन्ध (Universal Relation) नहीं है। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि रात में भोजन करने वाले सभी लोग मोटे हैं। यह शब्द के अन्तर्गत भी नहीं आता, क्योंकि यह आप्त वचन नहीं है। इस प्रकार अर्थापत्ति को अन्य 56
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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