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________________ प्रतिक्रियाएं उत्पन्न हुई और उपलब्ध विश्वास कसौटी पर कसे गये, असत्य का खण्डन कर सत्य की संस्थापना की गई है। समकालीन भारतीय चिन्तकों की सांस्कृतिक चेतना एवं राजनैतिक विचार उसी अजस्त्र चिन्तनधारा का अंग है, जो वेदों से आरम्भ होकर आगे श्री अरविन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महात्मा गांधी जी के विचारों में दिखलाई पड़ती है। किन्तु इस परम्परागत अजस्त्र धारा के साथ-साथ समकालीन भारतीय राजनैतिक चिन्तन में एक मानववादी प्रवृत्ति पाश्चात्य प्रकृतिवादी मानववाद का परिणाम है। इस धारा की प्रमुख राजनैतिक विचारधाराएँ हैं। मानवेन्द्रनाथ राय का नव मानवतावाद एवं जवाहरलाल नेहरु का प्रकृतिवादी मानववाद इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। जहां हॉब्स ने मनुष्य को जन्म से क्रूर, हिंसक, दुष्ट और स्वार्थी माना है, वहां लॉक के अनुसार मनुष्य शांतिप्रिय और विवेकी होता है। रूसो के अनुसार मनुष्य स्वभाव से सरल, भद्र, स्वतंत्र और अच्छा होता है। इस तरह हम देखते हैं कि तीनों विचारकों में प्राकृतिक अवस्था को लेकर मतान्तर है। ऐसा मतान्तर इसलिए है कि इन्हें प्रकृति का समुचित अनुभव नहीं है। जन्म से व्यक्ति में यदि सरलता एवं शांतिप्रियता है तो निश्चय ही उसमें बचपन से ही सतो गुण की वृद्धि हो रही होगी और उसमें तमोगुण एवं रजोगुण बिल्कुल नियंत्रित होंगे। फिर यदि जन्म से ही कोई बच्चा झगड़ालू, क्रूर एवं स्वार्थी है तो उसमें तमोगुण की प्रधानता है और उसका भोजन अर्थात् आहार और विहार भी सतोगुणी से भिन्न रहा होगा। श्रीमद्भगवद्गीता में तीनों प्रवृत्ति के लिए तीन तरह के भोजन करने की प्रवृत्ति की चर्चा की गई है और उसी प्रकार उनकी इच्छाएं एवं आकांक्षाएं बनती रहती हैं। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल एवं श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने भी इस बात की सम्पुष्टि की है। तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नाति मानिता। भवन्त सम्पदं दैवीमन्निजातस्य भारत।। अर्थात् ये सब दैवी गुण सम्पन्न व्यक्ति के लक्षण हैं और इनमें सत्व गुण की प्रधानता रहती है और फिर जिसमें तमोगुण की प्रधानता रहती है, उनके लिए कहा गया है-"दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च। अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्" | 130 ऐसे तमोगुण से सम्पन्न एवं सव्वगुण से विपन्न व्यक्तियों का ही कहना है कि “असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि। ईश्वरोऽहमहं भोगीसिद्धोऽहं बलवानसुखी।। (That enemy has been slain by me and I shall kill those others too. I am the lord of all, the injoyer of all power, I am endowed with all supernatural powers, and am mighty and happy.)" इतना ही नहीं आगे यह भी बताया गया है कि ऐसे व्यक्तियों का कहना है कि मैंने इतना धन एकत्र किया और अधिक एकत्र करूंगा। इतने की हत्या कर चुका हूं और आगे भी करूंगा। आज अमक व्यक्ति, परिवार और आगे भी करूंगा। आज अमुक व्यक्ति, परिवार और राष्ट्र को अपने अधीन कर चुका हूं 150
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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