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________________ भारत पर पूर्ण आधिपत्य जमाने हेतु अंग्रेजों ने सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की प्राविधिक शिक्षा और विशिष्ट व्यावसायिक शिक्षा देने के लिए विद्यालयों का निर्माण किया। मैकाले की शिक्षा पद्धति को लागू करने की कोशिश की गई। इस पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से एक ऐसे विशिष्ट वर्ग की उत्पत्ति हो गई और वे विशिष्ट लोग, जिसने राष्ट्रीय शिक्षा की ओर ध्यान दिया । यह वर्ग शिक्षा के महत्त्व को भली प्रकार जानता था इसमें देशमुख चिपलूणकर आगरकर, मगनभाई, कर्मचन्द कर्वे, लोकमान बालगंगाधर तिलक, गोखले, मालवीयजी, गांधीजी एवं नेहरूजी जैसे महापुरुषों ने राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज, दयानन्द सरस्वती द्वारा निर्मित आर्य समाज, स्वामी विवेकानन्द के द्वारा रामकृष्ण मिशन और अलीगढ़ आन्दोलन ने शिक्षा को प्रोत्साहित किया। गोपाल कृष्ण गोखले का कहना था कि देश की तत्कालीन दशा में पाश्चात्य शिक्षा का सबसे बड़ा कार्य भारतीय जनमानस को पुराने जीर्ण-शीर्ण विचारों की दासता से मुक्त करना और उसमें पाश्चात्य जीवन चरित्र और चिन्तन के सर्वोत्तम तत्त्वों से अनुप्राणित करना था। अगर भारतीयों ने पाश्चात्य शिक्षा का बहिष्कार किया तो वह एक भयंकर भूल सिद्ध हो सकती है। नेहरूजी आदि ने भी इस बात की सम्पुष्टि की है ये महान उदारवादी नेता व्यावहारिक आदर्शवादी और समाज सुधारक एवं राजनीतिक गुरु के रूप में जाने जाते थे। उपर्युक्त विचारकों के विरुद्ध रुडयार्ड किपलिंग का कहना था कि पूर्व पूर्व है और पश्चिम पश्चिम है तथा ये दोनों कभी भी नहीं मिल सकते हैं किन्तु वास्तविकता कुछ और ही है। आज संसार में लगभग सब कहीं प्रमुख विचारक पूर्व और पश्चिम के मिलन की बात कर रहे हैं। इस दृष्टि से समकालीन भारतीय चिन्तन में श्री अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी भारतीय परम्परा अथवा पूर्व के प्रतिनिधि हैं जबकि जवाहरलाल नेहरु, मानवेन्द्र नाथ राय, राहुल सांकृत्यायन आदि को पाश्चात्य परम्परा का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। वस्तुतः समकालीन भारतीय चिन्तन में नव्य वेदान्ती और प्रकृतिवादी अथवा भौतिकवादी दोनों ही विचारधाराओं का अपना महत्त्व है। उपर्युक्त दोनों विचारों के मिलन में पूर्व और पश्चिम का मिलन है। इसके समन्वय में दर्शन और विज्ञान, अध्यात्मवाद और भौतिकवाद, परम्परावाद और स्वतंत्र चिन्तन, प्रज्ञा और बुद्धि, आत्म-नियंत्रण और स्वतंत्रता का समन्वय होता है। डॉ. राधाकृष्णन् ने भारतीय दर्शन के प्रथम भाग की प्रस्तावना में ठीक ही लिखा है कि "यदि बाह्य कठिनाइयों को दूर करके उनसे ऊपर उठा जाए तो हम अनुभव करेंगे कि मानवीय हृदय की धड़कन में मानवता के नाते कोई भेद नहीं अर्थात् वह न भारतीय है और न यूरोपीय ।" 129 जब भी धर्म ने एक जड़मतवाद का रूप धारण करने की प्रवृत्ति दिखाई तो अनेक आध्यात्मिक पुनरुत्थान और दार्शनिक 149
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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