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________________ के लिए कल्पना को यथार्थ या न्यायसंगत होना पड़ता है। केवल यथार्थ या न्यायसंगत कल्पना की घटना की व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से कर सकती है। यथार्थ अथवा न्यायसंगत होने के लिए कल्पना को कुछ आवश्यक शर्तों का पालन करना पड़ता है। यदि कोई कल्पना इन शर्तों के मुताबिक होती है तो उसे यथार्थ या न्यायसंगत कहा जाता है। यानी तार्किक दृष्टिकोण से वही कल्पना यथार्थ होती है, जो निम्नलिखित शर्तों के अनुसार होती है 1. यथार्थ कल्पना को उटपटांग, अस्पष्ट और आत्मविरोधी नहीं होकर निश्चित और विचारणीय होना चाहिए। यदि हम ऐसा कहते हैं कि मलेरिया ज्वर का कारण या तो एनोफिलीज मच्छर का दंश (काटना) है या गन्दे पानी का पीना है तो यहां हम कोई बात स्पष्ट रूप से नहीं कहते हैं। इस तरह की प्राक्कल्पना के आधार पर हम कोई जांच आरम्भ नहीं कर सकते हैं। यथार्थ कल्पना को अनिश्चित नहीं होकर निश्चित होना चाहिए। चोरी होने पर यदि हम कल्पना करें कि नौकर ने या आगन्तुक ने चोरी की है तो हमारी कल्पना अनिश्चित होगी। इसे सन्दिग्ध, उटपटांग एवं अस्पष्ट भी नहीं होना चाहिए। 2. इसे संगत एवं परीक्षा के योग्य होना चाहिए। (A Scientific hypothesis must be verifiable.)127 किसी कल्पना को सिद्ध करने के लिए परीक्षा का जांच जरूरी है क्योंकि परीक्षा के बाद ही पूर्व कल्पना की सत्यता जानी जा सकती है। परीक्षा दो तरह की होती है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष । प्रत्यक्ष परीक्षा निरीक्षण और प्रयोग के द्वारा पूरी होती है। अप्रत्यक्ष परीक्षा भी दो तरह की होती है-निगमनात्मक और आगमनात्मक। यथार्थ कल्पना को साधारणतः पूर्वस्थापित सत्यों के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। (A hypothesis, when well-established, becomes a theory and a theory when accepted as treated as a fact.) यानी यथार्थ कल्पना को पूर्वस्थापित सत्यों से मेल होना चाहिए। जो कल्पना पहले से प्रमाणित सत्यों के विरुद्ध जाती है, उसके निराधार होने की संभावना अधिक होती है। जैसे यह प्रमाणित हो चुका है कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, फिर भी यदि कोई बैलून को ऊपर उड़ते हुए देखकर कल्पना करे कि "बैलून इसलिए ऊपर जाता है क्योंकि पृथ्वी की आकर्षण शक्ति इस पर काम नहीं करती है तो उसकी यह कल्पना पूर्वस्थापित सत्य के विरुद्ध होगी। हालांकि कोपरनिकस ने इस पूर्वस्थापित सत्य के विरुद्ध कल्पना की कि सभी ग्रह सूर्य की चारों ओर परिक्रमा करते हैं। बाद में यह कल्पना सत्य भी सिद्ध हो गई। इस तरह पूर्वस्थापित सत्य के 145
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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