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________________ न्याय-वैशेषिक 'बहुकारणवाद' (Plurality of causes) में विश्वास नहीं रखता। बहुकारणवाद के अनुसार एक घटना के अनेक कारण होते हैं। न्याय वैशेषिक का कहना है कि बहुकारणवाद को सत्य मानने पर अनुमान से ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। न्याय वैशेषिक के अनुसार कारण तीन प्रकार के होते हैं-(1) उत्पादन कारण (Material cause) (2) असमवायी कारण (Nonmaterial cause) और (3) निमित्त कारण (Efficient cause)| जिस द्रव्य (Material) में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, वही उसका उपादान कारण (Material cause) है। केवल द्रव्य से ही किसी वस्तु का निर्माण नहीं हो जाता। उदाहरणार्थ केवल मिट्टी से ही सुराही नहीं बन जाती। मिट्टी को सानना, गूंथना, पीटना, उसमें बालू, राख आदि मिलाना तथा उसे खास रूप देना आवश्यक है, तभी सुराही का निर्माण हो सकता है। मिट्टी, पानी, बालू, राख आदि को एक साथ मिलाना (Joining together) भी सुराही का एक कारण है। इसे ही असमवायी कारण (Non-material cause) कहते हैं। केवल मिट्टी के रहने और इसके पानी, बालू, राख आदि के साथ संयुक्त होने से ही सुराही का निर्माण नहीं हो सकता। इसके लिए एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है, जो मिटटी को पानी. बाल राख आदि के साथ मिलाकर उसको खास रूप देकर, चाक चलाकर सुराही का निर्माण करे। यह व्यक्ति (अर्थात कम्हार) ही यहाँ निमित्त कारण है। कुम्हार सुराही बनाने के लिए चाकु, डण्डा, छूरी इत्यादि का सहारा लेता है। इन साधनों को 'सहकारी' कहा जाता है। कार्य और उसके उपादान कारण के सम्बन्ध को लेकर भारतीय दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठ खड़ा होता है। क्या कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्व अपने उपादान कारण में विद्यमान रहता है? (Does the effect pre-ovate in its material cause?) उदाहरणार्थ क्या सुराही पहले से ही अपने उपादान कारण (मिट्टी) में छीपी रहती है? इस प्रश्न के दो उत्तर दिये जाते हैं-पहला मत सांख्य विचारकों का है। इस मत के अनुसार कार्य-कारण में पहले से ही विद्यमान रहता है। इसे 'सत्कार्यवाद' कहते हैं। दूसरा मत न्याय-वैशेषिक का है, जिसे 'असत्कार्यवाद' कहते हैं। इसके अनुसार कार्य उतपत्ति के पूर्व अपने उपादान कारण में विद्यमान नहीं रहता है। न्याय–वैशेषिकों ने 'असत्कार्यवाद' के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये हैं (1) यदि कार्य पहले से ही अपने उपादान कारण में विद्यमान रहता है तो फिर उसके उपादान होने का क्या अर्थ है? उदाहरणार्थ-यदि सुराही मिट्टी में पहले से ही स्थित है तो फिर सुराही का निर्माण निरर्थक जान पड़ता है। (2) यदि कार्य पहले से ही उपादान कारण में विद्यमान है तो फिर इसे उत्पन्न करने के लिए निमित्त कारण में विद्यमान है तो फिर इसे उत्पन्न करने के लिए निमित्त कारण (Efficient cause) को व्यर्थ प्रयास करने की क्या आवश्यकता है? 125
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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