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________________ न्ति यवतारहित पुरुषों की काम जाती है आचार मीमांसा में सुखवादी दार्शनिक के रूप में जाने जाते हैं, इनकी दृष्टि में अर्थ साधन और काम ही जीवन का लक्ष्य है। शंकराचार्य ने ठीक ही कहा है कि "आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वता तदुत्कामा चं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।"1" अर्थात् अपेक्षारहित पुरूष को शान्ति अर्थात् परम पुरुषार्थ (मोक्ष) की प्राप्ति होती है, दूसरे को अर्थात् भोगों की कामना करने वाले को नहींमिलता। अभिप्राय यह कि जिनको पाने के लिये इच्छा की जाती है उन भोगों का नाम काम है, उनको पाने की इच्छा करना जिसका स्वभाव है वह काम-कामी है, वह उस शान्ति को कभी नहीं पाता है। शान्ति के लिए इन्द्रिय अनुभव की नहीं बल्कि अनुभवातीत ज्ञान की जरूरत है। और चार्वाक अनुभवातीत ज्ञान के महत्त्व को स्वीकार ही नहीं करते हैं तो फिर उससे लाभ कैसे उठा पायेंगे? मनुष्य के लिए अनुभव और अनुभवातीत दोनों आवश्यक हैं। समृद्ध ज्ञान अथवा पूर्ण ज्ञान के लिए अपरोक्षानुभूति एवं अनुभवातीत ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। इसका निषेध बुद्धिसम्मत नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि चार्वाक दर्शन महत्त्वपूर्ण नहीं है अथवा बेकार है बल्कि आदिकाल से लेकर अभी तक इसके महत्त्व को स्वीकार करने के लिए सभी दार्शनिक बाह्य नजर आते हैं तभी तो एम. हिरियन्ना ने लिखा है-“यदि हम इसके उग्र विचारों को प्राचीन भारत में व्यापक रूप से प्रचलित कल्पना की स्वच्छन्द उड़ानों और कठोर तपश्चर्यावाद के विरूद्ध प्रतिक्रिया का फल भी मान लें तो भी हमें मानना पड़ेगा कि इस दर्शन के सिद्धान्त एक समय कम आपत्तिजनक रहे होंगे। जिस रूप में यह अब मिलता है, उससे इसके काल्पनिक जैसा होने का आभास होता है। मैक्समूलर ने भी इस बात की सम्पुष्टि सिक्स सिस्टम्स ऑफ इण्डियन फिलॉसॉफी में की है। आगे फिर एम. हिरियन्ना ने लिखा है कि यदि इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता हो तो वह हमें इसके भोगासक्ति के उपदेश में मिल जाएगा, जिसे सिखाने की जरूरत नहीं होती। चार्वाक दर्शन का अन्य सम्प्रदायों के द्वारा मानी हई बातों का निषेध करने में इतना अधिक प्रयत्न लगाना और भारतीय विचार जोड़ने में इतना कम प्रयत्न लगाना भी कुछ सन्देह पैदा करने वाली बात है।
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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