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________________ खण्डन कर दिया है, इसीलिए जे.एन. सिन्हा ने लिखा है-'They reject the authority of the Vedas and the supermacy of the Brîhmanas." वेदों में अनेक विरोधपूर्ण, द्वयर्थक, अस्पष्ट एवं अबौद्धिक वाक्यों की भरमार है, इसलिए इनसे सत्य अथवा असंदिग्ध ज्ञान की आशा करना व्यर्थ ही (घ) वेदों की रचना धूर्त ब्राहमणों ने अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए की है। इसीलिए चार्वाक ने कहा है कि "त्रयो वेदस्य कर्तारौ भण्ड धूर्त निशाचराः"। थार्थ ज्ञान का आधार पर भूत एज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा अत्यन्त चार्वाक की ज्ञान मीमांसा की आलोचना (क) इनके मुताबिक (चार्वाक के अनुसार) प्रत्यक्ष ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन है (प्रत्यक्षमेव प्रमाणम्)। इन्होंने अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि को यथार्थ ज्ञान का स्वतंत्र प्रमाण स्वीकार नहीं किया है। प्रत्यक्ष का क्षेत्र अत्यंत संकीर्ण है। इसके आधार पर भूत एवं भविष्य का ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं है। वर्तमान के भी सभी पदार्थों का ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा असंभव है। अगर प्रत्यक्ष को ही एकमात्र प्रमाण माना जाए तो ज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त संकुचित हो जायेगा। अतः प्रत्यक्ष को ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन नहीं कहा जा सकता है। (ख) अनुमान ज्ञान प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। तर्क-वितर्क, खण्डन–मण्डन इत्यादि अनुमान पर ही निर्भर करता है। अगर अनुमान को हम ज्ञान का साधन नहीं मानते हैं तो फिर मानव को बुद्धिशील या मननशील अथवा तर्कशील प्राणी नहीं कहा जा सकता है किन्तु इस विवेक गुण के अभाव में मनुष्य, मनुष्य न होकर पशु बन जायेगा इसलिए अनुमान का बहिष्कार मानव के लिए आत्महत्या के समान है। (ग) चार्वाक एक ओर तो अनुमान का खण्डन करते हैं और दूसरी ओर इसको ग्रहण करते हैं। दूसरों के विचारों को ग्रहण करने में और उन तक अपने विचारों को पहँचाने के लिए इन्होंने अनुमान की सहायता ली है। इसी प्रकार आत्मा. परमात्मा, स्वर्ग, पुनर्जन्म इत्यादि का खण्डन करने के लिए इन्हें अनुमान की ही सहायता लेनी पड़ती है। इस प्रकार चार्वाक अनुमान के खण्डन करने का मात्र ढोंग रचते हैं एवं स्वयं भीतरी दरवाजे से इसको अपना लेते हैं। (घ) अनुमान के विरुद्ध इनका (चार्वाक का) कहना है कि इससे कभी-कभी मिथ्या ज्ञान अथवा धोखा भी होता है, इसलिए इसे यथार्थ ज्ञान का साधन नहीं कहा जा सकता है। अगर चार्वाक की इस युक्ति को सत्य मान लें तो फिर प्रत्यक्ष को भी ज्ञान का साधन नहीं कहा जाना चाहिए चूँकि प्रत्यक्ष ज्ञान भी कभी-कभी गलत होता है। यानी प्रत्यक्ष ज्ञान से भी धोखा होता है। (ङ) शब्द को भी ज्ञान के साधन के रूप में अस्वीकार करने का मुख्य हेतु (चार्वाक यह बतलाते) हैं कि इससे हमेशा निश्चित एवं सही अथवा ठीक ज्ञान नहीं मिलता। यह कहना सत्य है कि शब्द-ज्ञान कभी-कभी अनिश्चित, 10
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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