SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ०९. ३४] श्रीदशलक्षण धर्म । ཟ་ཟས ་ ནག དར ་ས་ མདན तथा सब उसकी प्रतीति करते और चाहते हैं। देखो, महाराज रामचन्द्रजी और महाराज धर्मराजजी आदिके बचनोंका प्रभाव शत्रुपक्षपर भी पड़ता था। महाराज हरिश्चंद्र तथा राजा बलि आदिका नाम उनके सत्यवादी होने हीसे लोकमें अमर होगया। महाराज दशरथ, रतिपति वसुदेव अपने बचनों हीसे लोकमें चिरस्मरणीय हुए हैं । आजकल भी एक वचन हीकी प्रतीतिपर हुंडी पुरजादि द्वारा लाखों करोड़ों रुपयोंका व्यवहार चलता है । तात्पर्य-जहांतक लोकमें प्रतीति है वहांतक ही सब कुछ है और दिवाला निकलनेपर अर्थात् बात बिगड़ जानेपर मुँह काला होजाता है। राजा वसु झूठके कारण ही तीसरे नरकमें गया और कौरव, लोकमें निंद्य कहाये । ध्यान रहे कि थोडासा भी झूठ कभी २ प्राण तकका घात कर डालता है । एक कथा है कि किसी एक स्थानमें कोई सेठ था, उसने एक नौकर रक्खा । उस नौकरने सेठसे यह वचन लेलिया था कि सालभर. आपका काम तनमनसे सच्चा करूंगा, परन्तु वर्षमें एक दिन केवल एक ही बार झूठ बोलँगा । सेठजीने यह स्वीकारकर लिया, यह सोचकर कि एकबार झूठ बोलनेमें क्या होगा ? सालभर तो अच्छा कार्य कर सकेगा। निदान नौकरने सालभरतक कठिन परिश्रमद्वारा सेठजीको बहुत प्रसन्न किया और सालके अन्तमें सेठसे बोला कि-"मैं कल झूठ बोलंगा।" सेठने यह सुनकर भी इस बातको उपेक्षाभावसे भुला दिया । बस, नौकरने दूसरे दिन सवेरे सेठानीसे कह दिया कि “ सेठ व्यभिचारी हैं और वे नित्य अमुक वेश्याके यहां जाते हैं इसलिये
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy