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________________ . उत्तम सत्य। ३३ मुल भी लोगोंको लाममा पार्थ साधन होजाता है, वह सब सत्य को बांटमें होना है। देखो. ठग लोग मी पहिले उत्तम उतम वस्तुका नमूना दिन और पीस कम दामकी मिन्ाकर माप तोल देते हैं। यदि मरीददारको पहिस हो य. विदित होजाय, नो वह ले ही नहीं और पदानित आवश्यकतानुसार लेनको लाचार हो, तो उतने दाग न दे. और यदि दाम भी दे तो जितना लेना चाहता था उससे कितने ही अंगो का लेन । तात्पर्य-भेद ग्युलनसे फिर उसकी बिक्री टोक २ नहीं होगी। ___प्रायः देखा जाता है कि ऐसे धूर्त दाधिकतर देशपर्यटन ही किया करने, अथांन ये स्थिर होकर कहीं एक जगह दुकान नहीं खोल सकतं. क्योंकि रि कारखाने तो विश्वासपात्र पुरुषों के ही चल सकते हैं, धृतीक नहीं. इसीलिये वे हरजगहसे अपनी पोल खुलनकै पहिले ही नौ दो ग्यारह होजाने हैं, अर्थात् अन्यत्र चल देते हैं, कारण कि प्रगट होनपर राजदंड मिलनेकी तो पूरी पूरी संभावना है। वे सदैव शंकित रहते हैं कि कहीं कोई मेरी पोल न खोलदे । और जो शंकित रहे, वह मुखी कैसा? । . तात्पर्य-झुठा सदा ही दुःखी रहता है, इसलिये सुखी होनेके लिये सदा सत्य बोलना चाहिये। संसारमें भी झुठ बोलनेवालेको जिहाछेदन, ताड़न, मारन, फांसी, देशनिकाला और कारागार, आदि नाना प्रकारके दंड होते हैं । :. और इसके विपरीत सत्यवादीका ठौर २ आदर होता है ।
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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