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________________ ३० ] 1000115 श्रीदशलक्षण धर्म । SN उत्तम सत्य । जिणवयणमेव भासदितं पालेढुं असक माणो वि । चत्रहारेण वि अलियं चदि जो सच्चाई सो || अर्थात् ----जो सदैव जिन सूत्रानुसार ही वचन बोलते हैं और -यदि वे तीव्र कर्मके उदयसे कदाचित् उनके अनुसार चल भी नहीं सकते, तो भी कभी असत्य भाषण नहीं करते, न कभी व्यवहार में ( अथवा हास्य कौतुक छलकर भी ) झूठ बोलते हैं वे सत्यवादी कहे जाते हैं। ऐसे पुरुषोंके वचन सदैव स्वपर कल्याण के करनेवाले होते हैं। · ( स्वा० का ० अ० ) कहा भी है कि- 4 सते हितं यत् कथ्यते तत् सत्यम् = अर्थात् भलाई के लिये जो बोला जाय उसे ही सत्य कहते हैं और भलाई तब ही हो सकती है जब कि वस्तुका स्वरूप जैसा है वैसा ही - न्यूनाधिकता रहित कहा जाय, इसलिये यथार्थ बोलना ही सत्य बोलना हो सकता है । उत्तम शब्द गुणवाचक है । यह बताता है कि जिस कथन में अपनी ओरसे कुछ भी न मिलाया जाय अर्थात् जैसाका तैसा ही कहा जाय वह • सत्य है । अपनी ओर से न्यूनाधिक तत्र ही किया जाता है, जब कि कुछ रागद्वेष हो, या विषय कषाय पुष्ट करना हो क्योंकि अपेक्षा -रहित पुरुष किसलिये अपने निर्मल आत्माको बात बनानेकी व्यर्थ की उलझन में डालकर दुःखी करेगा ? अर्थात् नहीं करेगा । · 1 तात्पर्य यह है कि विषय, कषाय, रागद्वेषादि भाव आत्मा के निजस्वभाव नहीं हैं, और झूठ बिना विषय तथा कषायभावोंके बोला
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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