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________________ in उत्तम आजेव। [२९ nwuniwni manawares जोता गया, युद्धमें प्रेरा गया, नाक, मुँह, जिह्वा, लिंगादि छेदन किये गये, भार लादा गया, शक्तिहीन होनेपर कषायीके हाथ बेचा गया, देवी देवताओंकी बलि दिया गया, यज्ञमें होमा गया, यह तो पश्चन्द्री समनस्ककी कथा हुई तब चौ-इन्द्री, तीन-इन्द्री, दो-इन्द्री, एक-इन्द्रीका तो कहना ही क्या है ? जहाँ बड़े बड़े उपकारी जीवों ही की दया नहीं देखी जाती, वहां दीन क्षुद्र जीवोंकी तो कौन रक्षा करता है ? हाय! ऐसे पशुगतिके दुःख मायाचारीको भोगने पड़ते हैं ? ये ही मायाभाव जीवको अनन्त संसारमें भ्रमण कराते हैं, इसलिये ये कुभाव सदैव त्यागने योग्य हैं । उत्तम पुरुष ऐसे कुभावोंको त्याग कर स्वभावों-आर्जव भावोंको प्रगट करते हैं और मन, वचन, कायकी सरलता करके अनादि कर्म बन्धनको काटकर अविनाशी सुखोंको प्राप्त होते हैं। इसलिये उत्तम पुरुषोंको सदा स्वपर हितकारी उत्तम आर्जव धर्मको धारण करना चाहिये । सो ही कहा हैकपट न कीजे कोय, चोरनके पुर नहिं बसे । सरल स्वभावी होय, ताके घर बहु सम्पदा ॥ उत्तम आर्जव रीति वखानी, रंचक दगा बहुत दुखदानी। मनमें होय सो वचन उचरिये, बचन होय सो तनसे करिये॥ करिये सरल तिहुंयोग अपने, देख निर्मल आरसी। मुख करे जैसा लखे तैसा, कपट प्रीति अंगारसी ॥ नहि लहे लक्ष्मी अधिक छल कर, कर्मबंध विशेषता । भय त्याग दूध विलाव पीवे, आपदा नहिं देखता ॥३॥
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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