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________________ ཨཱཡནས་འཔདྨ་སཱ པསྶརཱནས་་་༤་་་ད་ཡཔན པ ཨཱཔ དཔལ་ནཱ་པཱནཨཱ་ནནྟཔནྟན་པxཡཱན་ "उत्तम मार्दव । [.१९ जो इनका मान करते हो ! यदि मान करोगे और दूसरोंको तुच्छ गिनोगे, तो नीचगोत्र कर्मका आश्रव करके नीच कुलमें चले जाओगे। तब फिर उच्चपणा कहां रहेगा जैसा कि श्रीमदुमास्वामीने कहा हैपरात्मनिंदाप्रशंसे सद्सद्गुणोच्छादनोद्भावने च नीचैर्गोत्रस्य । __अर्थात्-पराई निंदा और आत्म-प्रशंसा करने तथा अन्यके गुणोंको आच्छादन करने व अवगुणोंको प्रगट करनेसे नीचगोत्र कर्मका आस्रव होता है। - और यदि पुरुषार्थ ( उच्च आचार विचार रखने ) से कुल व नाति उच्च होती है, ऐसा मानते हो, तो फिर हरकोई अपने उच्च आचार विचारोंसे उच्च बन सकता है। तब मैं ही उच्च हूं ऐसा मान करना व्यर्थ है और एक बात यह भी है कि उच्च कुल जातिधारी महान् पुरुष कभी अपने आपको उच्च उच्च कहकर हलके नहीं बनते हैं। जैसा कहा है: "बड़े बड़ाई ना करे, बड़े न बोले बोल। . . . हीरा मुँहसे ना कहे, बड़ा हमारा मोल॥" : ___- लोकमें स्वप्रशंसा करनेवाला मनुष्य नीचातिनीच समझा जाता है और यह ठीक भी है क्योंकि नीच उच्चपना तो मनुष्यों के आचरण च विचारों से अपने आप ही प्रगट होजाता है। ... . . मानलो, कोई मनुष्य ब्राह्मण या क्षत्रिय, वैश्यके घरमें उत्पन्न होकर हिंसा करें, झूठ बोले, चोरी करे, व्यभिचार करे, न्यायान्याय रहित हुआ यथातथा भोगादि. पदार्थोके बढ़ानेमें तृष्णावान् रहे, अद्य,मांस भक्षण करे, जुआ खेले, इत्यादि और भी कुत्सितं कार्य करे,
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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