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________________ १८] श्रीदशलक्षण धर्म । 11 यहांतक कि कभी कभी बहुतसे मनुष्य अपने अधिकारियोंसे अप्रसन्न हो विपक्ष दलमें मिलकर अपनी २ मनोकामनाएं सिद्ध करते हैं । विभीषणही को देखो, कि जब रावणने उसका अपमान किया, तो वह चार अक्षौहिणी सेना सहित आकर रामचन्द्र से मिल गया और अपने भाईको मरवा डाला । इसीसे यह कहावत चरितार्थ हुई, कि घरका भेदी लंका दाह ! " 66 फिर भी यह ऐश्वर्य सदा नहीं रहेगा, बल क्षीण होते ही क्षीण हो जायगा, तब जिन्हें तुम तुच्छ समझते थे, ऐश्वर्याभिमानी हुए दूसरोंके सुख दुःख हानि लाभको नहीं देखते थे, तथा मनमानी आज्ञा चलाते थे सो वे ही मनुष्य तुमको अधिकार-भ्रष्ट देखकर प्रसन्न होवेंगे, तुमसे घृणा करेंगे और भरसक तुम्हारा : अपमान निंदा करनेमें कसर न करेंगे । देखो, रावणको मरे हजारों वर्ष होगये हैं तब भी प्रातःकाल कोई उसका नामतक नहीं लेता । इसलिये ऐश्वर्याभिमान करना भी वृथा है । कहा है और " दिन दश आदर पायके, करले आप बखान | जबलग काक श्राद्ध पक्ष, तबलग तुझ सन्मान ॥ " : तात्पर्य-ऐश्वर्य सदा स्थिर नहीं रहता है। वह भी बल और बुद्धि तथा द्रव्य आश्रित है, इसलिये उसका अभिमान करना भी व्यर्थ है । यदि कुल े ( पितापक्षं ) वा जाति ( मातापक्ष ) का अभिमान करते हो तो भी मूल है, क्योंकि कुल व जाति पूर्व कर्म से प्राप्त हुए हैं। यदि ऐसा मानों तो वर्तमानमें तुम्हारा इसमें पुरुषार्थ ही क्या है,
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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