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________________ आचारांग प्रस्तावना अर्धमागधी आगम ग्रन्थ जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग माना जाता है । अर्धमागधी में आज जो आगम उपलब्ध हैं वे श्वेताम्बर परम्परा में महावीरवाणी नाम से जाने जाते हैं । आधुनिक काल में आगमों की संख्या के बारे में दो मान्यताएँ हैं । एक मान्यता के अनुसार अर्धमागधी आगम ३२ हैं तो दूसरी मान्यता के अनुसार ४५ हैं । प्रकीर्णकों की अमान्यता तथा मान्यता के कारण यह संख्या-भेद है । ४५ आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है । १) ११ अंग (१२ वाँ दृष्टिवाद) २) १२ उपांग ४) ६ छेदसूत्र ६) २ चूलिकासूत्र ३) ४ मूलसूत्र ५) १० प्रकीर्णक क्रमांक अर्धमागधी आयारंग सूयगडंग ठाणग समवायंग वियाहपण्णत्ति नायाधम्मकहा १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. .9. उवासगदसा अंतगडदसा अणुत्तरोववाइयदसा पण्हावागरण विवागसु दिट्ठिवाय १ (नन्दी तथा अनुयोगद्वार) संस्कृत आचाराङ्ग सूत्रकृताङ्ग स्थानाङ्ग समवायाङ्ग व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती ) ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अंतकृद्दशा अनुत्तरौपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकसूत्र (श्रुत) दृष्टिवाद
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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