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________________ 0000000000 कहते हैं वे जीव मिथ्यादृष्टि हैं । ।४४ ।। (५) जिनसूत्र अनुसार यथार्थ उपदेश देना योग्य है । जिन जीवों को थोड़े से दिनों की मान-बड़ाई के लिए अन्य मूर्खों के कहने से जिनसूत्र का उल्लंघन करके बोलने में भय नहीं होता उन जीवों को परभव में जो दुःख होंगे उनको यदि जानते हैं तो केवली भगवान ही जानते हैं । । ५६ । । (६) जो जीव जिनसूत्र का उल्लंघन करके उपदेश देते हैं उनके सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति रूप बोधि का नाश होता है और अनंत संसार बढ़ता है इसलिए प्राणों का नाश होते भी धीर पुरुष जिनसूत्र का उल्लंघन करके कदापि नहीं बोलते । । ५७ ।। (७) यदि तूने सूत्र का उल्लंघन करके ऐसा वचन कहना प्रारंभ कर दिया है कि जिसमें अपना भी कुछ हित नहीं है और पर का भी हित नहीं है तो हे जीव ! तू निःसंदेह संसार समुद्र में डूब गया और तेरा तपश्चरणादि का समस्त आडंबर वृथा है । । ६५ ।। (८) जो जीव कारण रहित अज्ञान के गर्व से सूत्र का उल्लंघन करके बोलते हैं वे पापियों में भी अत्यंत पापी हैं और अधमों में भी महा अधम हैं। लौकिक प्रयोजन के लिए जो पाप करते हैं वे तो पापी ही हैं परन्तु जो बिना प्रयोजन पंडितपने के गर्व से अन्यथा उपदेश करते हैं वे महापापी हैं ।। १२१ । । (९) उत्सूत्रभाषी जीव मिथ्या अभिमानवश अपने को पंडित मानते हुए नरक - निगोदादि नीच गति ही के पात्र होते हैं और अनंत संसार में भ्रमण करते हैं। महावीर स्वामी के जीव मारीचि ने जैन सूत्र का उल्लंघन करके उपदेश दिया जिसके कारण उसने अति भयानक भव-वन में कोड़ाकोड़ी सागर तक भ्रमण किया । ।१२२-१२४ । । (१०) अहो ! वह मंगल दिवस कब आएगा जब मैं उत्सूत्र के लेश अर्थात् अंश रूपी विषकण से रहित होकर जिनधर्म को सुनूँगा ! | । १२८ । । 41
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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